Navratri 2018: नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की करें पूजा, अष्ठभुजाओं के ये हैं मायने

Navratri 2018: नवरात्रि का चौथा दिन देवी कुष्मांडा का होता है. देवी की पूजा उनके महामंत्र के बिना बिल्कुल न करें. वहीं, मां कुष्मांडा के बीजमंत्र का भी जाप कर सकते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं है. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है.

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Navratri 2018: नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की करें पूजा, अष्ठभुजाओं के ये हैं मायने

Aanchal Pandey

  • March 21, 2018 5:23 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: Navratri 2018: हिंदुओं का पावन पर्व नवरात्रि का आज चौथा दिन है. नवरात्रि का चौथा दिन देवी कुष्मांडा का होता है. आज के दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है. पूरा संसार कूष्मांडा ही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं है. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. मां कूष्मांडा देवी दाहिने प्रथम हाथ में कुभ अपनी कोख से लगाए हुए हैं. जो गर्भावस्था का प्रतीक माना जाता है. दूसरे हाथ में चक्र, तीसरे में गदा और चौथे में देवी सिद्दियों और निधियों का जाप करने वाली माला को धारण करती हैं.

मां कूष्मांडा बाएं प्रथम हाथ में कमल पुष्प, द्वितीय में शंख, तृतीय में धनुष तथा चतुर्थ में कमंडल लिए हुए है. देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं. कूष्मांडा मां सिंह पर आरूढ़, शांत मुद्रा में विराजमान रहती हैं. श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं.मां कुष्मांडा देवी की आराधना से रोग-शोक समाप्त हो जाते हैं और इन्हें पापों की विनाशिनी कहा जाता है.कूष्मांडा की उपासना से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है, सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं.

इनकी भक्ति से आरोग्यता के साथ-साथ आयु और यश की प्राप्ति होती है. इसलिए इस दिन अत्यंत पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना संपूर्ण विधि-विधान से करनी चाहिए. कहा जाता है कि मां कूष्मांडा लाल गुलाब चढ़ाने पर अति प्रसन्न होती हैं. रोगों से निजात, दीर्घजीवन, प्रसिद्धि और शोहरत पाने के लिए  मां को मालपुआ का भोग लगाएं. इस उपाय से बुद्धि भी कुशाग्र होती है. देवी कूष्मांडा की पूजा करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर उनके मंत्र का ध्यान करें.

“सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥”
देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए.
कुष्मांडा मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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