मनुष्य के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भूत-प्रेत क्या खाते हैं? आइए जानते हैं स्कंदपुराण में इस विषय पर क्या कहा गया है।
नई दिल्ली: मनुष्य के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भूत-प्रेत क्या खाते हैं? आइए जानते हैं स्कंदपुराण में इस विषय पर क्या कहा गया है। स्कंदपुराण के अनुसार, एक समय राजा विदुरथ नामक एक दानवीर और महाप्रतापी राजा थे। एक दिन, वह अपने सैनिकों के साथ शिकार के लिए जंगल गए। उन्होंने एक हिंसक पशु को घायल किया, लेकिन वह भाग गया। राजा विदुरथ ने उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा किया और इस दौरान वह अपनी सेना से बिछड़ गए। भूख और प्यास के कारण थक कर वह बेहोश हो गए। जब राजा होश में आए, तो उन्होंने तीन प्रेतों को देखा। वे डर गए और पूछा, “आप कौन हैं?” प्रेतों में से एक ने उत्तर दिया, “हम प्रेत हैं, अपने कर्मों के कारण इस योनि में हैं।”
प्रथम प्रेत ने कहा, “मेरा नाम मांसाद है। मैंने हमेशा मांसाहारी भोजन किया, इसलिए मुझे यह नाम मिला।” दूसरे ने कहा, “मेरा नाम विदैवत है। मैंने कभी देवताओं को भोग नहीं लगाया।” तीसरे ने कहा, “मेरा नाम कृतघ्न है, क्योंकि मैंने जीवन में विश्वासघात किया।”
राजा विदुरथ ने मांसाद से पूछा, “आप लोग प्रेत योनि में क्या खाते हैं?” मांसाद ने उत्तर दिया
1. लड़ाई करने वाले घर: जिस घर की स्त्रियां भोजन करते समय आपस में लड़ती हैं।
2. गौ माता का अनादर: जिस घर में गौ माता को ग्रास दिए बिना भोजन किया जाता है।
3. स्वच्छता का अभाव: जहां झाड़ू नहीं लगता और गाय के गोबर से नहीं लिपा जाता।
4. मांगलिक कार्य का अभाव: जहां मांगलिक कार्य नहीं होते और अतिथियों का सम्मान नहीं किया जाता।
5. टूटे-फूटे बर्तन: जिस घर में टूटे बर्तनों का इस्तेमाल होता है और वेदों के मंत्र नहीं सुनाई देते।
6. श्राद्ध का अभाव: जहां श्राद्ध दक्षिणा के बिना या विधि पूर्वक नहीं किया जाता है।
7. दूषित भोजन: जिस भोजन में केश आ जाता है, वह भी हमारा आहार होता है।
इस प्रकार, प्रेतों के आहार के बारे में यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने आहार और आचरण का ध्यान रखना चाहिए, ताकि हम जीवन में सकारात्मकता बनाए रख सकें।
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