नई दिल्ली: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस खास मौके पर भगवान श्रीकृष्ण और शनि देव से जुड़ी एक रोचक कथा सुनने को मिलती है। कथा में बताया गया है कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो माता यशोदा ने शनि देव को घर में घुसने नहीं दिया। आइए जानते हैं, इसके पीछे का कारण और इस कथा का पूरा विवरण।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो नंदगांव में उनके दर्शन के लिए सभी देवी-देवता पहुंचे। शनि देव भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए वहां आए। लेकिन जब वे नंदगांव पहुंचे और घर में प्रवेश करना चाहा, तो माता यशोदा ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया।
माता यशोदा को शनि देव की “क्रूर दृष्टि” का भय था। उन्होंने सोचा कि अगर शनि देव की दृष्टि उनके बालक श्रीकृष्ण पर पड़ी, तो उसका कोई बुरा असर हो सकता है। इस वजह से माता यशोदा ने शनि देव को घर में घुसने से मना कर दिया। इस घटना से शनि देव काफी दुखी हो गए और वे ध्यान और तपस्या के लिए वन में चले गए।
वन में तपस्या करते हुए शनि देव को काफी समय बीत गया। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी तपस्या का कारण जानने के लिए कोयल का रूप धारण किया। मधुर बांसुरी की ध्वनि से प्रभावित होकर वन में महिलाएं भी आकर्षित होने लगीं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने असली रूप में आकर शनि देव के सामने प्रकट हुए और उनसे पूछा कि वे तपस्या क्यों कर रहे हैं।
शनि देव ने बताया कि वे केवल अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और न्याय करने का काम करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें क्रूर समझा जाता है। साथ ही उन्होंने बालक कृष्ण के दर्शन न कर पाने का दुख भी व्यक्त किया। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने शनि देव को संतुष्ट किया और उन्हें वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति उनकी पूजा करेगा, उसकी परेशानियां कम होंगी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने शनि देव को नंदनवन में रहने के लिए कहा। तभी से मथुरा का कोकिलावन स्थान शनिधाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
यह कथा हमें सिखाती है कि शनि देव को केवल क्रूर नहीं समझना चाहिए। वे अपने कर्तव्य का पालन करते हुए न्याय करते हैं। साथ ही, भगवान श्रीकृष्ण का शनि देव को वरदान देने से यह स्पष्ट होता है कि शनि की पूजा करने से व्यक्ति की परेशानियां दूर हो सकती हैं।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व न केवल भगवान के जन्म का उत्सव है, बल्कि यह हमें उनके जीवन से जुड़े गहरे संदेश भी देता है। शनि देव और श्रीकृष्ण की यह कथा हमें न्याय, भक्ति और समर्पण का महत्व समझाती है।
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