नई दिल्ली: माता सीता, जो भगवान श्रीराम की पत्नी और भारतीय पौराणिक कथाओं में जिनका एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं, उनको भी श्राप का सामना करना पड़ा था। यह श्राप उनके जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों से जुड़ा हुआ है, जिस वजह से माता सीता को प्रभु श्रीराम से बाल्यावस्था में हुए कर्मों के कारण अलग होना पड़ा था। आइए जानते हैं इसके पीछे का सत्य।
धार्मिक कथाओं के मुताबिक सीता अपनी सखियों के साथ बाल्यावस्था में एक बगीचे में खेल रहीं थीं। इतने में वहां एक पेड़ पर बैठे एक तोता तोती के जोड़े पर उनका ध्यान गया। माता सीता और प्रभु श्रीराम को लेकर ये जोड़ा आपस में बातें कर रहा था, जिसे माता सीता छुपकर सुनने लगीं। भविष्य के महान राजा श्रीराम जन्म ले चुके हैं, तोता तोती आपस में बातें कर रहे थे। राजा श्रीराम एक महान प्रतापी राजा बनेंगे और भविष्य में राजा जनक की पुत्री राजकुमारी सीता से उनका विवाह होगा।
माता सीता तोते के जोड़े से अपने बारे में सुनकर आश्चर्यचकित होकर उनके पास पहुंची। माता सीता ने दोनों से कहा कि आप दोनों जिस राजकुमारी सीता की बात कर रहे हैं , क्या वह ही जनक पुत्री राजकुमारी सीता हैं। मेरा भविष्य आप दोनों को कैसे पता है। इसके बाद तोते ने कहा कि उसकी पत्नी और वह दोनों ही महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम में लगे एक पेड़ पर रहते थे। ये सब बातें महर्षि वाल्मीकि ही अपने शिष्यों को बताया करते थे जिसे हम दोनो भी सुनते थे। अब तो हमने ये सब बातें हमें रटी हुई हैं।
इसके बाद माता सीता ने तोते के जोड़े को अपने भविष्य के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने साथ महल में रखने की इच्छा जताई। इसके बाद तोते ने माता सीता के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। अपनी जिद पर माता सीता अड़ी रहीं और दोनों को पकड़ने की कोशिश करने लगी। इतने में पत्नी मादा तोता सीता माता की पकड़ में आ गईं जबकि नर तोता तो उड़ गया।
तोते ने माता सीता से अपनी पत्नी को मुक्त करने के लिए प्रार्थना करी की उसकी पत्नी इस समय गर्भवती है। तोते ने कहा कि उसे छोड़ दें पर माता सीता उस समय काफी छोटी थीं। इसी कारण से माता सीता ने इंकार कर दिया। इस बात से नाराज होकर माता सीता को नर तोते ने श्राप दिया की जिस प्रकार आपकी वजह से मुझे अपनी गर्भवती पत्नी से अलग होना पड़ा, ठीक इसी तरह आपको भी गर्भवती होने पर अपने जीवनसाथी से अलग होना पड़ेगा।
तोते ने इतना कहकर प्राण त्याग दिए थे। इसी के कारण माता सीता जंगल में अकेले रहेना पड़ा और उन्हें अपने पति से दूर होना पड़ा। माता सीता का यह श्राप उनके साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया। उन्होंने समाज की धारणाओं के खिलाफ जाकर अपने सिद्धांतों को बनाए रखा। यह श्राप उनके जीवन में एक परीक्षा के रूप में आया, जिसमें उन्होंने अपनी शक्ति और धैर्य को साबित किया।
माता सीता का श्राप न केवल उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि सत्य और पवित्रता के मार्ग पर चलना कभी-कभी कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने के बावजूद आवश्यक होता है।
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