नई दिल्ली। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सदियों से भाई बहन का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला यह त्योहार सिर्फ लोक परंपरा का हिस्सा नहीं है बल्कि इसके साथ कई पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक तथ्य जुड़े हुए हैं। एक मामूली से धागे में आखिर ऐसा क्या है जो सदियों से हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। आइए आज रक्षाबंधन से जुड़ी हुई पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं।
मान्यता है कि सतयुग में दैत्यों के राजा बली द्वारा एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था। राजा बली अपनी दानशीलता के लिए जाना जाता था। एक दिन उसकी परीक्षा लेने के लिए स्वयं हरि भेष बदलकर पहुंचे। वामना अवतार में भगवान ने राजा बली से तीन पग भूमि मांगी। दो पग में उन्होंने धरती और आकाश नाप लिया। तीसरे पग के लिए जगह नहीं बची तो राजा बलि ने अपना सिर नीचे रख दिया। राजा बलि की दानशीलता को देखकर भगवान प्रसन्न हो गए और वर मांगने को कहा।
बलि ने भगवान श्रीहरि से कहा कि आप मेरे साथ पाताललोक चले और वहीं पर निवास करें। भगवान विष्णु पाताल चले गए, इस वजह सभी देवी-देवता और माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं। माता लक्ष्मी श्रीहरि को वापस लाने के लिए एक गरीब स्त्री का भेष धारण कर राजा बलि के पास पहुंच गई और उन्हें राखी बांधी। बली ने प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी से उपहार मांगने को कहा तो बदले में उन्होंने भगवान को पाताल से मुक्त करने का वचन मांगा। मां लक्ष्मी के बांधे रक्षा सूत्र का इतना महत्व था कि बली ने स्वयं विष्णु को जाने दिया। जिस दिन माता ने रक्षा सूत्र बांधा था, उस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी। उसी समय से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।
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