नई दिल्लीः पूजा के दौरान हवन करने की परंपरा पुरानी है। हवन के दौरान आहुति देते समय स्वाहा शब्द बोला जाता है। इसके बिना हवन अधूरा माना जाता है। स्वाहा शब्द के बारे में धार्मिक ग्रंथों के आधार पर कई कहानियां प्रचलित हैं। आइए जानें कि हवन में आहुति देते समय “स्वाहा” शब्द का उच्चारण […]
नई दिल्लीः पूजा के दौरान हवन करने की परंपरा पुरानी है। हवन के दौरान आहुति देते समय स्वाहा शब्द बोला जाता है। इसके बिना हवन अधूरा माना जाता है। स्वाहा शब्द के बारे में धार्मिक ग्रंथों के आधार पर कई कहानियां प्रचलित हैं। आइए जानें कि हवन में आहुति देते समय “स्वाहा” शब्द का उच्चारण क्यों किया जाता है?
स्वाहा शब्द को लेकर धार्मिक ग्रंथों में कई कहानियां हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन देवी-देवताओं को खाने-पीने की कमी महसूस हुई। ऐसी कठिन परिस्थिति से बचने के लिए, भगवान ब्रह्मा एक समाधान लेकर आए. की क्यों न ब्राह्मणों के माध्यम से ब्रह्मांड को भोजन और पेय प्रदान किया जाए? इस कार्य के लिए उन्होंने अग्निदेव को चुना। प्राचीन काल में अग्निदेव में किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति नहीं थी। इसी से स्वाहा शब्द सामने आया। स्वाहा को अग्निदेव के साथ रहने का आदेश दिया गया। तब से, अग्निदेव को हर चीज़ अर्पित की जाती थी, तो स्वाहा उसे भस्म कर देवी देवताओं तक पहुंचा देती थीं। तभी से स्वाहा सदैव अग्निदेव के साथ रहते हैं।
यदि आपके परिवार में कलह की स्थिति चल रही है तो हवन का अनुष्ठान बहुत उपयोगी माना जाता है। पूरे घर में हवन की राख बिखेरने से सुख-शांति आती है। इसके अलावा आर्थिक समस्याओं को दूर करने के लिए भी हवन किया जाता है। हवन की राख को लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रखें। माना जाता है कि इससे आपको आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। हवन करने से बुरी नजर भी दूर हो जाती है।
हवन के लिए देवदार की जड़, आम की लकड़ी, गूलर की छाल, पलाश का पौधा, बेल, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, कपूर, लौंग, चावल, मुलैठी की जड़, अश्वगंधा की जड़, पीपल की छाल और तना, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरे का उपयोग किया जाता है। यह सभी वस्तुएंवातावरण को प्रदूषण से मुक्त करती हैं।