नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां(Makar Sankranti 2024) पड़ती हैं, जिनमें से एक मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य, धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इस दिन खरमास समाप्त होता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2024 को मनाया […]
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां(Makar Sankranti 2024) पड़ती हैं, जिनमें से एक मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य, धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इस दिन खरमास समाप्त होता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति वाले दिन पर गंगा स्नान और दान का बहुत महत्व होता है। मकर संक्रांति पर शुभ मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। वहीं मकर संक्रांति वाले दिन यानी की 15 जनवरी को सुबह 9:13 बजे सूर्य, धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में गोचर करने जा रहे हैं।
बता दें कि ये दिन सूर्य और शनि के मिलन का है। ऐसा माना(Makar Sankranti 2024) जाता है कि इस दिन सूर्य की काले तिल के साथ उपासना करने से व्यक्ति को शनि दोष से राहत मिलती और इसके अलावा मकर संक्रांति के मौके पर शनिदेव और सूर्यदेव की कथा पढ़ने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक , सूर्य देव और शनि देव पिता- पुत्र जरुर थे लेकिन दोनों के बीच रिश्तों में खटास आ गई थी। इसकी वजह थी सूर्य देव का शनि की माता छाया के प्रति उनका व्यवहार, जब शनि देव का जन्म हुआ तो सूर्यदेव ने शनिदेव के काले रंग को देखकर कहा कि ये उनका पुत्र नहीं हो सकता है। सूर्य देव ने शनि को पुत्र स्वीकार नहीं किया। इसके बाद से सूर्य देव ने शनि देव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया था। शनि देव और माता, कुंभ नाम के घर में रहने लगे लेकिन सूर्य के इस व्यवहार से आहत होकर माता छाया ने उन्होंने कुष्ट रोग का श्राप दे दिया।
अपने पिता को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर उनके पुत्र यमराज काफी दुखी हुए। यमराज, सूर्यदेव की पहली पत्नी संज्ञा की संतान थे। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त कराया था। फिर सूर्य देव जब पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद अपनी दृष्टि कुंभ राशि पर केंद्रित कर ली। इससे शनि देव का घर ‘कुंभ’ जलकर राख हो गया था। जिसके बाद शनि और उनकी माता छाया को काफी दुःख भोगना पड़ रहा था।
यमराज अपने भाई और सौतेली माता की दुर्दशा देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य से दोनों को माफ करने की विनती करते हैं। जिसके बाद सूर्य देव शनि से मिलने के लिए जाते हैं। इस दौरान जब शनि देव अपने पिता सूर्य देव को आता हुआ देखते हैं, तो वो अपने जले हुए घर की तरफ देखते हैं फिर वे घर के अंदर जाते हैं। जहां एक मटके में कुछ तिल रखे हुए थे। शनि देव इन्हीं तिलों से अपने पिता का स्वागत करते हैं।
शनिदेव के इस व्यवहार से भगवान सूर्य देव खुश हो जाते हैं और शनि देव को दूसरा घर देते हैं। इस घर का नाम मकर होता है। इस दौरान शनि देव प्रसन्न होकर कहते हैं कि जो भी मकर संक्रांति पर सूर्य की उपासना करेगा उसे शनि की महादशा से राहत मिलेगी, उसका घर धन-धान्य से भर जाएगा। यही वजह है कि जब सूर्य देव अपने पुत्र के पहले घर यानि कि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
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