नई दिल्ली. भारत में मकर संक्रांति पर्व को बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है और सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है. मकर संक्रांति हर राज्य में उनकी संस्कृति के अनुसार मनाया जाता है. इस दिन सूर्य की उपासना की जाती है. 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है. मकर संक्रांति का अपना महत्व और मन्याता है जिसकी वजह हर संस्कृति में इस त्योहार को पूरे जोश के साथ मनाया जाता है. आइए जानते हैं मकर संक्रांति पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व और मंत्र.
मकर संक्रांति मनाने की ये है वजह
हिंदू मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति उसे कहा जाता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. इस दिन से सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिये इस त्योहार को मकर संक्रांति कहा जाता है. बता दें तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है.
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है. बता दें उत्तरायण सूर्य, सूर्य की एक दिशा है. मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 महीने के समय अन्तराल को उत्तरायण कहते हैं. सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं. मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान दान और पुण्य के शुभ समय का विशेष महत्व है. सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर जाना शुरू कर देते हैं. इस दिन से रातें छोटीऔर दिन बड़े होने लगते हैं.
मकर संक्रांति की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति के दिन व्रत करने और व्यंजन बनाने की विशेष परंपरा है. इस दिन तिल के पानी से नहाधोकर पूजा की जाती है. वैसे तो गंगा स्नान करने की परंपरा भी है. स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन पितरों का ध्यान भी करना चाहिए. सूर्य देव को भोग में तिल के पकवान चढ़ाए जाते हैं. मकर संक्रांति 14 जनवरी रविवार को मनाई जाएगी.
मकर संक्रांति पुण्य काल शुभ मुहूर्त- रात 02:00 बजे से सुबह 05:41 तक
मुहूर्त की अवधि- 3 घंटा 41 मिनट
संक्रांति समय- रात 02:00 बजे
मकर संक्रांति महापुण्य काल मुहूर्त- 02:00 बजे से 02:24 तक
मुहूर्त की अवधि- 23 मिनट
मकर संक्रांति शुभ मंत्र
. ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:
. ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:
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