नई दिल्लीः कुम्भ मेला हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में एकत्र होते हैं और नदी में स्नान करते हैं। इस बार यह पर्व 13 जनवरी से 26 फरवरी तक रहेगा। आज हम आपको महाकुंभ के धर्म ध्वज के बारे में बताएंगे। महाकुंभ का नारा है ‘यतो धर्मस्ततो जय’ महाकुंभ में धर्मध्वजा का यही सार हमारे देश की न्याय व्यवस्था की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के प्रतीक चिह्न पर भी अंकित है। इस श्लोक का अर्थ है, जहां धर्म है, वहां विजय निश्चित है। धर्म के इसी मानवीय अर्थ के साथ महाकुंभ में अखाड़ों की धर्म ध्वजा फहराई जाती है।
आवाहन अखाड़े के श्रीमहंत भारद्वाज गिरि बताते हैं कि धर्म ध्वजा धर्म का प्रतीक है। अखाड़ों की सनातनी परंपरा में धर्म का मानवीय मूल्य यही है, जब तक उम्मीद है, तब तक सांसें हैं।
यह धर्मध्वजा अखाड़ों की पहचान है। अखाड़े इस ध्वज को अपने गुरु का प्रतीक मानते हैं। ध्वज का वैदिक अर्थ है निरंतर हिलना। अखाड़ों का ध्वज उनके सम्मान, शक्ति और इष्टदेव का प्रतीक है। हर अखाड़े का धर्मध्वजा 52 हाथ लंबा होता है। यह चार दिशाओं में 4 धागों पर टिका होता है। हर अखाड़े के ध्वज का रंग अलग-अलग होता है, कुछ के कई रंग होते हैं लेकिन सभी ध्वजों में 52 पट्टियां अनिवार्य होती हैं। अखाड़ों के साधु-संत अपनी धर्मध्वजा को कभी झुकने या गिरने नहीं देते। इतिहास बताता है कि वे इसकी रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
महाकुंभ में सभी अखाड़ो के साधू-संत जमा हो रहे हैं। शुरुआत में धर्म की रक्षा के लिए सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े ही बने थे। बाद में अलग-अलग मान्यताओं के आधार पर 13 अखाड़े बन गए। 2018 में किन्ररों के लिए 14वां अखाड़ा बना। अखाड़ों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें पहला है शैव, जिसके 7 अखाड़े हैं। दूसरा है वैष्णव, जिसके 3 अखाड़े हैं और तीसरा है उदासी संप्रदाय, जिसके तीन अखाड़े हैं।
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