Ujjain Mahakal: सावन की शुरुआत के साथ भगवान शिव के लाखों भक्त मंदिरों में जल चढ़ाने के लिए पहुंच रहे है। सावन के पूरे महीने देशभर के सभी शिव मंदिरों में भीड़ जुटी रहती है। आपको बता दें भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग है, जिसमे से एक है उज्जैन का महाकाल मंदिर। इस मंदिर की रीतियों के अनुसार हर साल महाकाल अपनी नगरी के भ्रमण पर निकलते हैं और नगरवासियों का हाल जानते हैं।
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का भी पौराणिक महत्व है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के आग्रह पर भोले बाबा यहीं विराजमान हो गए थे। भगवान महाकालेश्वर को उज्जैन नगरी का राजा माना जाता है। महाकाल की शाही सवारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान महाकाल की शरण में आए बिना इस नगरी में पत्ता भी नहीं हिलता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शाही सवारी क्यों निकाली जाती है, इस गौरवशाली परंपरा का इतिहास क्या है?
आपको बता दें कि बाबा महाकाल की पहली सवारी 22 जुलाई को निकाली जाएगी। इस दिन बाबा महाकाल खुद अपने भक्तों का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलेंगे। उनकी शाही सवारी 2 सितंबर को निकाली जाएगी।
पहले सावन के महीने में महाकाल की सवारी नहीं निकाली जाती थी, केवल महाराष्ट्र पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थी, जो कि सिंधिया परिवार द्वारा निकाली जाती थी। एक बार कलेक्टर भी कुछ विद्वानों के साथ उज्जैन के महान ज्योतिषाचार्य पद्म भूषण स्वर्गीय पंडित सूर्यनारायण व्यास के निवास पर थे। आपसी विचार-विमर्श में उन्होंने यह निर्णय लिया गया कि क्यों न इस बार सावन के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए।
सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन और सम्मान करने वालो में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिंधिया और शहर के अन्य बड़े लोग मौजूद थे। सभी ने पैदल सवारी में भाग लिया और इस प्रकार एक सुंदर परंपरा शुरू हुई।
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