महाभारत के महान योद्धा अर्जुन का अंत उनके अपने पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों हुआ था। ये एक अनसुनी और दिलचस्प कथा है, जो हमें युद्ध, धर्म और बदले
नई दिल्ली: महाभारत के महान योद्धा अर्जुन का अंत उनके अपने पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों हुआ था। ये एक अनसुनी और दिलचस्प कथा है, जो हमें युद्ध, धर्म और बदले की भावना का अनूठा अनुभव कराती है। आइए जानते हैं कैसे अर्जुन के पुत्र ने ही उनका वध किया और देवी गंगा अर्जुन की मृत्यु पर क्यों मुस्कुराने लगीं।
महाभारत के युद्ध के बाद, युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। कुछ समय बाद, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। इस यज्ञ के अंतर्गत, एक अश्व (घोड़ा) को छोड़ा गया और जहां-जहां वह घोड़ा जाता, अर्जुन उसकी रक्षा करने के लिए साथ चलते। कई राज्यों के राजा बिना लड़े ही हस्तिनापुर की अधीनता स्वीकार कर लेते थे, लेकिन कुछ राज्यों में अर्जुन को युद्ध करना पड़ता।
अश्व कई राज्यों से होता हुआ मणिपुर पहुंचा, जहां अर्जुन का पुत्र बभ्रुवाहन राजा था। जब बभ्रुवाहन को पता चला कि उसके पिता अर्जुन मणिपुर आ रहे हैं, तो वह स्वागत के लिए सीमा पर पहुंचा, लेकिन अर्जुन ने उसे रोक दिया और कहा कि इस समय वह उसके पिता नहीं, बल्कि युधिष्ठिर के प्रतिनिधि हैं। अर्जुन ने बभ्रुवाहन को युद्ध के लिए ललकारा, अन्यथा उसे हस्तिनापुर की अधीनता स्वीकार करने को कहा।
बभ्रुवाहन को उलूपी (अर्जुन की दूसरी पत्नी) ने क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वह अपने पिता अर्जुन से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। पिता-पुत्र के बीच घमासान युद्ध हुआ, लेकिन युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकल सका। अंततः बभ्रुवाहन ने कामाख्या देवी के दिव्य बाण से अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब अर्जुन की मृत्यु का समाचार फैला, तो श्रीकृष्ण और कुंती मणिपुर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि देवी गंगा अर्जुन के मृत शरीर के पास बैठकर हंस रही थीं। देवी गंगा ने कहा कि अर्जुन ने उनके पुत्र भीष्म का छल से वध किया था और अब उन्हें अपने पुत्र के वध का बदला मिल गया है। लेकिन श्रीकृष्ण ने गंगा को समझाया कि अर्जुन ने भीष्म को मारने का निर्णय उनकी अनुमति से लिया था।
अपनी गलती का एहसास होते ही देवी गंगा ने श्रीकृष्ण से अर्जुन को पुनर्जीवित करने की विनती की। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सिर को धड़ से जोड़ा और उलूपी के पास रखे नागमणि से अर्जुन को जीवनदान दिया।
यह कथा सिर्फ एक पिता-पुत्र के बीच युद्ध की नहीं, बल्कि धर्म, कर्तव्य और बदले की भावनाओं का अनोखा संगम है। अर्जुन का पुनर्जीवित होना हमें यह सिखाता है कि सच्चे धर्म का पालन करने वाले कभी पराजित नहीं होते।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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