अध्यात्म

महाभारत युद्ध: पांडवों ने कौन से 5 गांव मांगे थे, जिन्हें न देने पर छिड़ा युद्ध?

नई दिल्ली: महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच सत्ता के संघर्ष की वजह से हुआ था। जब पांडवों ने अपना 13 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास पूरा कर लिया, तब वे अपना राज्य वापस चाहते थे। हालांकि, वे युद्ध नहीं चाहते थे और इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण ने शांति का प्रस्ताव रखा।

श्रीकृष्ण के शांति के 3 सुझाव

युद्ध से बचने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर जाकर शांति के लिए तीन सुझाव दिए:

1. इंद्रप्रस्थ का लौटाना: पहला सुझाव था कि पांडवों को उनका राज्य इंद्रप्रस्थ लौटा दिया जाए। लेकिन धृतराष्ट्र, दुर्योधन और बाकी कौरवों ने इसे मानने से इनकार कर दिया।

2. दुर्योधन की माफी: दूसरा सुझाव था कि दुर्योधन पांडवों और द्रौपदी से माफी मांगें। इससे दुर्योधन और ज्यादा क्रोधित हो गया।

3. पांच गांवों की मांग: तीसरा और अंतिम सुझाव था कि पांडवों को सिर्फ पांच गांव दे दिए जाएं ताकि युद्ध टल सके। श्रीकृष्ण ने अवस्थल, वारणावत, वृकस्थल, माकन्दी और कोई एक और गांव देने की मांग की थी।

दुर्योधन का अंहकार और युद्ध की घोषणा

शांति के इन सभी प्रस्तावों को सुनकर दुर्योधन ने अंहकार में कहा, “मैं पांडवों को सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा।” इसके बाद उसने श्रीकृष्ण को बंदी बनाने की कोशिश भी की, जो उसकी मूर्खता साबित हुई। इस पर श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कर दिया कि अब युद्ध और कौरवों का विनाश निश्चित है।

कौन से थे वे 5 गांव, जिनकी मांग श्रीकृष्ण ने की थी?

महाभारत के समय, जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध टालने के लिए श्रीकृष्ण ने शांति समझौते की कोशिश की, तब उन्होंने पांडवों की ओर से केवल पांच गांव मांगे थे। आइए जानते हैं वे कौन से पांच गांव थे और आज के समय में उनका क्या महत्व है:

1. इंद्रप्रस्थ (आज का दिल्ली)

इंद्रप्रस्थ, जिसे श्रीकृष्ण ने सबसे पहले मांगा था, पांडवों की राजधानी मानी जाती थी। इसे ‘श्रीपत’ भी कहा जाता है और यह आज का दिल्ली है। पांडवों ने यहां खांडवप्रस्थ जैसी वीरान जगह पर शहर बसाया था। श्रीकृष्ण के कहने पर मयासुर ने यहां महल और किले का निर्माण किया था। आज भी यहां ‘पुराना किला’ मौजूद है, जिसे पांडवों के इंद्रप्रस्थ से जोड़ा जाता है।

2. व्याघ्रप्रस्थ (आज का बागपत)

महाभारत काल में बागपत को व्याघ्रप्रस्थ कहा जाता था, जिसका अर्थ है ‘बाघों की जगह’। यह वही जगह है जहां कौरवों ने पांडवों को जलाने के लिए लाक्षागृह बनाया था। आज यह उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है और यहां की आबादी 50 हजार से अधिक है।

3. पांडुप्रस्थ (आज का पानीपत)

पानीपत, जिसे पांडुप्रस्थ भी कहा जाता था, दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर है। यह जगह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं। महाभारत के युद्ध स्थल कुरुक्षेत्र भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है।

4. तिलप्रस्थ (आज का तिलपत)

तिलपत, जिसे पहले तिलप्रस्थ कहा जाता था, हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित है। यह यमुना नदी के किनारे बसा एक छोटा सा कस्बा है, जिसकी आबादी 40 हजार से अधिक है।

5. स्वर्णप्रस्थ (आज का सोनीपत)

सोनीपत, जिसे पहले स्वर्णप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, हरियाणा राज्य का एक महत्वपूर्ण जिला है। स्वर्णप्रस्थ का अर्थ है ‘सोने का शहर’। इसका नाम समय के साथ बदलकर सोनीपत हो गया।

इन पांच गांवों की मांग श्रीकृष्ण ने इसलिए की थी ताकि बिना युद्ध के शांति स्थापित हो सके, लेकिन दुर्योधन ने इन्हें देने से मना कर दिया, जिससे महाभारत का भीषण युद्ध हुआ, जिसने भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय लिखा।

 

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Anjali Singh

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