नई दिल्ली/ यूपी के वृंदावन में वैष्णव कुंभ लग रहा है जिसे कुंभ बैठक भी कहा जाता है. देश में चार प्रमुख कुंभ लगते है. हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज. हालांकि इसमें वैष्णव अखाड़े हिस्सा लेते हैं. इस कुंभ में सबसे ज्यादा शाही स्नान का महत्व होता है. इस शाही स्नान के लिए देश के कोने-कोने से साधु-संत, सन्यासी और महात्मा आते हैं.
कुंभ मेले में कई चीजें देखने को मिलती है जिनमें ललाट पर त्रिपुंड, शरीर में भस्म लगाए नागा साधुओं का हठ योग हो, साधना, विद्वानों के प्रवचन, अखांड़ों के लंगर, अध्यात्म और धर्म पर चर्चा शामिल होते हैं. कुंभ मेले का महत्व हिंदू धर्म में बेहद अहम होता है. इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं.
बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार 11 मार्च को महाशिवरात्रि है और इस दिन हरिद्वार में पहला शाही स्नान होगा. इसके बाद दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को, तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल और फिर चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को शाही स्नान होगा. हालांकि इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए यहां पर आने वाले हर श्रद्धालु को नियमों का पालन करना होगा.
जानिए शाही स्नान का महत्व
सनातन परंपरा के अनुसार कुंभ मेले में शाही स्नानों का विशेष महत्व है. ये शाही स्नान अखाड़ा विशेष के महंत एवं उनके नागा शिष्य करते हैं. विभिन्न अखाडा के महंत एवं नागा सूर्योदय से पूर्व गंगा में डुबकी लगाते हैं, ये संत प्रतिदिन 1008 बार गंगा में डुबकी लगाते हैं. इनके स्नान करने के बाद ही आम श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं. प्रत्येक श्रद्धालु गंगा में कम से कम 5 डुबकियां लगाते हैं. कुछ श्रद्धालु अपने साथ परिजनों के नाम की भी डुबकियां लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से सभी के पाप कट जाते हैं.
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