अध्यात्म

Kamada Ekadashi 2018: जानें कामदा एकादशी की महत्ता और व्रत विधि

नई दिल्ली. चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन व्रत रखने से प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है. इस दिन का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है एवं समस्त विघ्नों में विजय की प्राप्ति होती है. इस एकादशी के दिन नारायण भगवान का पूजन अरचन किया जाता है. इस व्रत को करने से आपके कई जन्मों के पापों से आपको मुक्ति मिलती है एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. या व्रत समस्त विपदाओं से मुक्ति दिलवाने वाला व्रत है.

पौराणिक कथा
प्राचीन समय में भोगिपूर नामक राज्य में ललित एवं ललिता नामक गंधर्व एवं अप्सरा का वास था. नगर बहुत खुश हाल था एवं वहां कई गंधर्व वास करते थे. एक दिन राजा के समक्ष गंधर्व ललित गाना गा रहे थे एवं गाते गाते उन्हें बीच में ही अपनी पत्नी ललिता का ध्यान आने लगा. ललिता की सोच में दुबे ललित के सुर एवं ताल में गड़बड़ होने लगी. पास ही बैठे कर्कट नाग को यह बात ज्ञात हो गयी. फिर क्या था, उसने जा कर राजा से चुगली कर दी. क्रोध में आकर राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे डाला. ललित तो राक्षस बन गया, इस बात का पता जब ललिता को चला तो वह बेसुध हो वन वन में भ्रमड़ करने लगी. भ्रमड़ करते करते वह शृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंची. उनसे अपने पति को राक्षस योनि से मुक्त करने का उपाय पूछने लगी. शृंगी ऋषि ने उसे आने वाली कामदा एकादशी के दिन उपवास कर भगवान विष्णु की शरण में जाने के लिए कहा.

ललिता इस बात को सुन कर आने वाली कामदा एकादशी के दिन दशमी रात्रि से ही जागरता कर भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष बैठ कर उनका स्मरण कर अपने पति के मुक्ति का मार्ग मांगने लगी. द्वादशी की प्रातः काल को उसने विधिपूर्वक व्रत का पारण किया. व्रत का पारण करते ही, भगवान विष्णु की कृपा से गंधर्व ललित को राक्षस योनि से मुक्ति मिली एवं वापस वह गंधर्व रूप में आ गए. उसी के साथ में उन्हें वापस भोग विलास की सभी वस्तुएं भी वापस प्राप्त हो गयी एवं स्वर्ग में निवास करने लगे.

व्रत की विधि
दशमी की रात्रि को फलाहार भोजन आदि से निवृत हो, नारायण का ध्यान रख कर व्रत रखें. एकादशी के दिन सुबह शुद्ध होकर नारायण की चतुर्भुज मूर्ति को स्नान आदि कर कर षोडशोपचार पूजन कर व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात “ॐ नमो भगवते वासुदेवाए” मंत्र का १०८ बार पाठ करें, उसके बाद आप भागवत कथा का पाठ भी कर सकते हैं.

पुरुष सुक्तम पड़ना भी अत्यंत शुभ होता है. रात्रि को हल्का फलहार लेकर रात भर जागरण करें, भागवान विष्णु की महिमा का गान, भजन आदि करें. द्वादशी के दिन प्रातः काल उठ कर शुद्ध होकर नारायण पूजन के पश्चात, गरीबों को भोजन खिला कर व्रत को तोड़ें एकादशी तिथि के दिन चावल, बैगन, मसूर दाल का भोजन वर्जित है. व्यक्ति को सात्विक आहार एवं विचारों का पालन करना चाहिए एवं किसी भी प्रकार के व्यसन से दूर रहना चाहिए. जो भी रतजगा कर नारायण के ध्यान में लीन रहता है, ऐसा माना जाता है की उसके समस्त पापों का तो नाश होता ही है साथ ही में सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.

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Aanchal Pandey

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