पूर्वोत्तर भारत के असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित महापीठ कामाख्या देवी मंदिर मां के दूसरे धामों से एकदम अलग है. इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति स्थापित नहीं अपितु यहां उनके योनि स्वरूप की पूजा होती. दुनिया भर में अकेला ऐसा मंदिर है जहां माना जाता है कि यहां मां रजस्वला होती हैं.
गुवाहाटीः चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुके हैं. देश भर के देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. इन्हीं मंदिरों में से एक असम की राजधानी गुवाहाटी में बसा कामाख्या देवी मंदिर. मां का यह दिव्य धाम 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. ऐसा माना जाता है कि यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.
मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति
इस मंदिर की खास बात है कि यहां माता की कई मूर्ति नहीं है, यहां देवी के योनि भाग की पूजा होती है. मंदिर में एक कुंड जो हमेशा फूलों के ढका रहता है. इस जगह के पास ही एक मंदिर हैं जहां मां की मूर्ति स्थापित है. यह पीठ माता के सभी पीठों में से महापीठ माना जाता है.
भक्तों को मिलता है गीले कपड़े का प्रसाद
मां के इस अनोखे धाम में भक्तों को दिया जाने वाला प्रसाद भी अनोखा है. यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन के बाद जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है. जिसे प्रसाद स्वरूप बांट दिया जाता है.
कैसे पहुंचें
कामाख्या शक्तिपीठ जाने के लिए पूर्वोत्तर रेलवे की असोम-लिंक रेल लाइन (छोटी लाइन) से अमीन गांव जाना होता है. वहां से ब्रह्मपुत्र नदी को स्टीमर से पार करके आगे की 5 किलोमीटर यात्रा बस, टैक्सी, कार या आटो द्वारा (जो साधन भी उपलब्ध हो) कामाख्या देवी मंदिर पहुंचते हैं। अब ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल बन जाने से आवागमन के समस्त साधन उपलब्ध हो जाते हैं. इस स्थान तक पहुंचने का एक अन्य विकल्प है- पाण्डु से रेल द्वारा गुवाहाटी आकर कामाख्या देवी जाया जा सकता है. गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलो मीटर दूर स्थित इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आटोरिक्शा आदि भी उपलब्ध हो जाते हैं. गुवाहाटी रेल, सड़क तथा वायुमार्ग से पहुंचा जा सकता है.
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