कांगड़ाः माता की शक्तिपीठों में से एक अपनी चमत्कारिक शक्तियों के प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. कालीधार पहाड़ी के बीच बसे मां के इस दिव्य धाम में बिना किसी बाती, घी या तेल के नौ ज्वालाएं जलती रहती हैं. नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला जो चांदी के जाला के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं. अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं.
क्या है पौराणिक कथा
मान्यता है कि अपने पिता दक्ष के घर भगवान शिव का अपमान होने पर माता सती ने हवन कुंड में कूद अपना शरीर त्याग कर दिया था. सती की मृत्यु के आहत शिव उनका शव लेकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे. भगवान शिव को मोह से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को छिन्न-भिन्न कर दिया. धरती पर जहां-जहां माता सती के अंग गिरे वह शक्तिपीठ कहलाता है. शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा गिरी थी.
ज्वाला को न बुझा सका अकबर
कथा है कि मुगल बादशाह अकबर ने अहंकारवश ज्वाला देवी के ज्योति को बुझाने का हरसंभव प्रयास किया. लेकिन वह असफल रहा. जब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ तो उसने मां से क्षमा मांगते हुए उन्हें सोने का छत्र चढ़ाया. जो अभी भी वहां रखा हुआ है.
गोरखनाथ के इंतजार में माता की ज्योति
एक और मान्यता है कि भक्त गोरखनाथ यहां माता की आरधाना किया करता था. एक बार उसे भूख लगी भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं. लेकिन वह नहीं लौटा. मान्यता है कि सतयुग आने पर बाबा गोरखनाथ लौटकर आएंगे, तब-तक यह ज्वाला यूं ही जलती रहेगी.
चमत्कारिक है गोरख डिब्बी
ज्वाला दवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है. मंदिर के पास ही ‘गोरख डिब्बी’ है. यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है.
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