Karwa Chauth 2019: पति की लंबी उम्र की मंगलकामना के लिए मनाया जानें वाल करवा चौथ का व्रत हर वर्ष कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. चतुर्थी तिथि में चन्द्रोदयव्यापिनी का काफी महत्वपूर्ण स्थान है. इस बार करवा चौथ का व्रत 17 अक्टूबर 2019 को गुरवार को दिन पड़ रहा है. मान्यता है कि सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत काफी महत्वपूर्ण होता है. इस दिन चौथ माता के साथ उनके छोटे पुत्र श्री गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होती है. करवा चौथ के दिन भगवान शिव, पार्वती, स्वामिकार्तिक और चंद्रमा की पूजा अर्चना का विधान है.
Karwa Chauth 2019: पति की लंबी उम्र की मंगलकामना के लिए मनाया जानें वाल करवा चौथ का व्रत हर वर्ष कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. चतुर्थी तिथि में चन्द्रोदयव्यापिनी का काफी महत्वपूर्ण स्थान है. इस बार करवा चौथ का व्रत 17 अक्टूबर 2019 को गुरवार को दिन पड़ रहा है. करवा चौथ का व्रत तृतीय के साथ चतुर्थी के उदय काल के दिन करना शुभ होता है. तृतीया तिथि जया तिथि होती है. इससे पति को अपने कार्यों में चंहुओर विजय प्राप्त होती है.
चौथ माता करती है पत्नीं के सुहाग की रक्षा
मान्यता है कि सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत काफी महत्वपूर्ण होता है. इस दिन चौथ माता के साथ उनके छोटे पुत्र श्री गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होती है. करवा चौथ के दिन भगवान शिव, पार्वती, स्वामिकार्तिक और चंद्रमा की पूजा अर्चना का विधान है. चौथा माता सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभग्यवती का वरदान देती हैं और उनके सुहाग की सदा रक्षा करती है. साथ ही पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और उल्लास बनाए रखती है.
करवा चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य दान का है मुहूर्त
करवा चौथ के दिन चौथ माता की विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य का दान किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि रात्रि में चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से युक्त होती हैं. चंद्रमा को अर्घ्य देते समय पति पत्नी को भी चंद्रदेव की शुभ किरणों का औषधीय गुण प्राप्त होता है, इसलिए चंद्रमा को अर्घ्य देते पति पत्नी दोनों मौजूद रहते हैं. अर्घ्य दान के बाद पति पत्नी को जल पिलाकर व्रत को पूरा करते हैं.
अर्घ्य दान का समय
महिलाएं करवा चौथ के दिन निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन अन्न और जल का त्याग करना होता है. हालांकि रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य दान के बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत को पूरा करती हैं और फिर भोजन ग्रहण करती हैं. बीमार और गर्भवती महिलाओं को बीच बीच में जल और चाय पीने की छूट रहती है. उनके लिए व्रत के नियमों में ढील दी जाती है.
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