नई दिल्लीः कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस तिथि पर शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के दैत्य का वध किया था, इस वजह से इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा विशेष मानी जाती है, क्योंकि भगवान विष्णु की उपासना करने के लिए कार्तिक मास को उत्तम बताया गया है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान करने से बड़े-बड़े यज्ञों को करने के बराबर फल मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा की तिथि का आरंभ 26 नवंबर, रविवार को दोपहर 3 बजकर 53 मिनट पर होगा। वहीं, इसका अंत 27 नवंबर, शुक्रवार को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट पर होगा।
कार्तिक पूर्णिमा का सनातन धर्म में बड़ा महत्व माना जाता है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान दीपदान हवन यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप धूल जाते है और अगले जन्म में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण के मुताबिक जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी पूर्ण फल का भागी बन जाता है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल प्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान करें। गंगा स्नान संभव नहीं है तो घर में ही स्नान के पानी में गंगाजल मिला लें। स्नान के बाद मंदिर में दीपक जलाएं। भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी का पूजा करें। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान विष्णु को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल आदि अर्पित करें और भगवान विष्णु को भोग चढ़ाएं । ध्यान रखें कि भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल अवश्य डाला होना चाहिए । इस दिन भगवान शिव की आराधना भी करें। शिवलिंग पर जल अर्पित करें।
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