नई दिल्लीः हिंदू धर्म में एकादशी की तिथि को बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। भक्त भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद पाने के लिए एकादशी का व्रत रखते हैं। व्रत के बारे में व्रत के बिना कोई भी व्रत अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं कामदा एकादशी व्रत का इतिहास और जानते […]
नई दिल्लीः हिंदू धर्म में एकादशी की तिथि को बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। भक्त भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद पाने के लिए एकादशी का व्रत रखते हैं। व्रत के बारे में व्रत के बिना कोई भी व्रत अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं कामदा एकादशी व्रत का इतिहास और जानते हैं इस व्रत की महिमा के बारे में।
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तारीख का प्रारंभ 18 अप्रैल को शाम 05 बजकर 31 मिनट पर होगा। वहीं इस तिथि का समापन 19 अप्रैल को रात 08 बजकर 04 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में उदया तिथि के मुबारक, कामदा एकादशी का व्रत 19 अप्रैल, शुक्रवार के दिन किया जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को कामदा एकादशी की कथा सुनाई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, भोगीपुर में एक समय पुंडरीक नामक राज्य था। वह सदैव आनंद से भरा रहता था। इस राज्य में ललित और ललिता नाम के एक पुरुष और एक स्त्री रहते थे जो एक दूसरे से प्रेम करते थे। एक दिन, जब ललित राजा के दरबार में गा रहा था, तो उसका ध्यान ललिता की ओर आकर्षित हुआ। जिस कारण उसका स्वर बिगड़ गया और गान भी खराब हो गया। यह देखकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होनें ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। अपने पति की यह हालत देखकर ललिता बहुत दुखी हुई। उसने अपने पति को ठीक करने के लिए कई लोगों सहायता मांगी।
तब किसी की सलाह पर ललिता विंध्याचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुंची। वहां पहुंचकर उसने ऋषि को अपनी दुर्दशा के बारे में बताया। तब ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ऋषि ने यह भी कहा कि इस व्रत के प्रताप से तुम्हारा पति पुनः मनुष्य रूप में लौट आएगा। ऋषि की सलाह पर ललिता ने कामदा एकादशी का व्रत विधि-विधान से किया और भगवान विष्णु का ध्यान किया। अपना व्रत पूरा करने के बाद भगवान विष्णु की कृपा से ललित को मानव रूप प्राप्त हुआ। इस प्रकार वे दोनों जीवन की चिंताओं से मुक्त हो गये। इसके बाद दोनों लगातार कामदा एकादशी का व्रत करने लगे, जिससे अंततः दोनों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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