Kalashtami 2024: कब है साल 2024 की पहली कालाष्टमी? जानें मुहूर्त और पूजा विधि

नई दिल्ली: हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, कालाष्टमी(Kalashtami 2024) के नाम से जानी जाती है। बता दें कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की विशेष रूप से पूजा होती है और काल भैरव को मानने वाले लोग इस दिन व्रत रखकर रात्रि काल में उपासना करते हैं। इसके […]

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Kalashtami 2024: कब है साल 2024 की पहली कालाष्टमी? जानें मुहूर्त और पूजा विधि

Janhvi Srivastav

  • January 3, 2024 6:20 pm Asia/KolkataIST, Updated 11 months ago

नई दिल्ली: हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, कालाष्टमी(Kalashtami 2024) के नाम से जानी जाती है। बता दें कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की विशेष रूप से पूजा होती है और काल भैरव को मानने वाले लोग इस दिन व्रत रखकर रात्रि काल में उपासना करते हैं। इसके साथ तंत्र विद्या से जुड़े लोगों के लिए कालाष्टमी का दिन खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शिव के भक्त काल भैरव रूप की आराधना से जीवन से सारे दुख, शोक रोग, संकट आदि दूर हो जाते है। चलिए अब जानते हैं साल 2024 की पहली कालाष्टमी की मुहूर्त, तारीख और महत्व।

पौष कालाष्टमी 2024 की तारीख

साल 2024 की पहली कालाष्टमी 4 जनवरी(Kalashtami 2024) यानी की गुरुवार को है। बता दें कि इस दिन काल भैरव की सामान्य रूप से पूजा करनी चाहिए और इसके अलावा भगवान शिव का अभिषेक करने पर सौभाग्य और सुख में वृद्धि होती है।

पौष कालाष्टमी 2024 मुहूर्त

हिंदू पंचांग के मुताबिक पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 3 जनवरी 2024 को रात 07 बजकर 48 मिनट से शरू होगी और अगले दिन 4 जनवरी 2024 को रात 10 बजकर 04 मिनट समाप्त होगी।

सुबह का मुहूर्त: सुबह 07.15 से – सुबह 08.32 तक
शाम का मुहूर्त: शाम 05.37 से – रात 07.19 तक
निशिता काल मुहूर्त: रात 11.49 से – देर रात 12.53 तक , 5 जनवरी

राहु-केतु नहीं करेंगे हानि

बता दें कि कालाष्टमी पर चौमुखी दीपक लगाकर बाबा भैरव का स्मरण करें और फिर बटुक भैरव कवच का पाठ करें. मान्यता है अगर राहु-केतु किसी शुभ कार्य में बार- बार कोई बाधा पैदा कर रहे हैं, यह फिर काम में सफलता नहीं मिल रही तो इस उपाय से दोनों पाप ग्रह शांत होते हैं। इसके साथ ही सर्वत्र विजय प्राप्ति के लिए ये उपाय बहुत फलदायी माना जाता है।

शनि दोष होगा शांत

बता दें कि कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव को गेरुआ सिंदूर, इमरती, नारियल, पान अर्पित करें और फिर “ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि।” मंत्र का जाप करें। बता दें कि इस विधि से पूजा करने पर शनि, राहु-केतु की पीड़ा से मुक्ति मिलती है और हनुमान जी के अतिरिक्ल काल भैरव ही ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना से शीघ्र फल प्राप्त होता है।

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