Jagannath Rath Yatra 2018: आज से शुरू हो रही है जगन्नाथ रथ यात्रा, जानिए इतिहास, महोत्सव और महत्व

जगन्नाथ यात्रा 2018 आज यानि शनिवार से शुरू हो रही है. विश्व की सबसे प्राचीन रथ यात्रा में से एक है उड़ीसा के पुरी यह जगन्नाथ रथ यात्रा. वहीं गुजरात के अहमदाबाद में भी भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. जानिए जगन्नाथ रथ यात्रा महत्व, इतिहास, तिथि और पौराणिक कथा.

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Jagannath Rath Yatra 2018: आज से शुरू हो रही है जगन्नाथ रथ यात्रा, जानिए इतिहास, महोत्सव और महत्व

Aanchal Pandey

  • July 14, 2018 7:53 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. आषाढ़ शुक्ल द्वितीया यानि 14 जुलाई 2018 (शनिवार) से प्रसिद्ध व सबसे बड़ी यात्रा में से एक जग्गनाथ यात्रा शुरू हो रही है. इस मशहूर रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ का 45 फीट ऊंचा रथ होता है जिसे श्रद्धालु पूरे नगर में भ्रमण करवाते हैं. इस रथ यात्रा को उड़ीसा के पुरी, गुजरात और कोलकाता में विशेष तौर पर मनाया जाता है. हर साल दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं. यह त्योहार पूरे 9 दिन तक जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है.

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथ भी निकाले जाते हैं. इन रथों को खूब सजाया और सुंदर नक्काशी की जाती है. पुरी की यह रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुण्डिच्चा मंदिर तक पहुंचती है. उड़ीस के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है और वर्षों से चली आ रही है जिसे श्रद्धालु आज भी पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं.

जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास
प्राचीन काल में एक इंद्रद्युम नाम का राजा था जो कि भगवान जगन्नाथ का परम भक्त था. एक दिन राजा ने सोचा कि वह जगन्नाथ भगवान के दर्शन करने नीलांचल पर्वत पर जाएंगे. राजा जब नीलांचल पर्वत पर गए तो वह वहां देव प्रतिमा के दर्शन न कर पाए जिसके बाद निराश राजा इंद्रद्युम पर्वत से नीचे उतर कर आ रहे थें तभी आकाशवाणी हुई कि राजा निराश मत हो तूझे जल्द ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के स्वरूप में पुन: के दर्शन होंगे. राजा यह सुनकर खुश हुआ.

कुछ दिन बीत गए एक दिन राजा पुरी के समुद्र तट पर टहल रहा थे और अपने राजपाठ इत्यादि के बारे में गहन चिंतन कर रहे थे तभी समुद्र में लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए. जब राजा ने यह देखा तो उन्हें नीलांचल पर्वत की आकाशवाणी की याद आई. जिसके बाद राजा ने प्रण लिया कि वह इन लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनवाएगा. राजा कि यह निष्ठा देख तभी भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा राजा के महल में बढ़ई के रूप में प्रकट हुए. विश्वकर्मा ने राजा से लकड़ी से प्रतिमा बनाने की बात तो कही लेकिन राजा से एक बड़ी शर्त रखी.

बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा ने राजा से कहा कि वह इस मूर्ति को एकांत में बनाएंगे और इस दौरान कोई भी उनके पास नहीं आएंगे वरना वह काम बीच में ही छोड़ कर चले जाएंगे. राजा ने शर्त मान ली और दूसरी तरफ मूर्ति बनाने का काम गुण्डिचा नामक जगह पर शुरू हुआ. जब विश्वकर्मा एकांत में मूर्ति बना रहे थे उस स्थान पर राजा भूलवश जा पहुंचे जिसके बाद विश्कर्मा अपनी शर्त के मुताबिक वहां से अंर्तधान हो गए. इस बीच भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं.

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