नई दिल्ली। हर समुदाय की अपनी-अपनी परंपराए होती हैं। सनातन परंपरा में लोग अपने से बड़ो का आशिर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं जिसका मतलब है कि व्यक्ति अपने से बड़े को सम्मान दे रहा है। हिंदू अपने माता-पिता, गुरू या बुजुर्गों के पैर छूता है लेकिन इस्लाम के ऊपर भी अक्सर यह सवाल उठता है कि मुसलमान पैर क्यों नही छू सकते हैं। दरअसल, इसके पीछे इस्लामिक दृष्टिकोण है जिसे हम समझने की कोशिश करेंगे।
इस्लाम में किसी के पैर छूना या उसके आगे झुकना हराम है क्योंकि यह सजदा (प्रणाम) का एक रूप है जो सिर्फ़ अल्लाह के लिए किया जा सकता है। इस्लामी शरिया के अनुसार, किसी के सामने झुककर सम्मान जताना भी हराम (निषिद्ध) माना जाता है। यहाँ तक कि कब्रों पर झुकना और सजदा करना भी अनुचित माना जाता है क्योंकि यह एक तरह से अल्लाह के सामने सजदा करने को कम करता है।
शरिया-ए-मोहम्मदी के अनुसार, किसी के सामने झुकना, चाहे वह कितना भी सम्मानित क्यों न हो, हराम माना जाता है। इस्लामी शिक्षाएँ सिखाती हैं कि सम्मान दिखाने का तरीका सिर झुकाने के बजाय दिल में सम्मान रखना है।
इस्लाम में किसी के प्रति सम्मान जताने के कई और तरीके हैं। सबसे प्रमुख तरीका सलाम कहना है। जब आप किसी से मिलते हैं या अलविदा कहते हैं, तो आप “अस्सलाम वालेकुम” कहते हैं, जिसका अर्थ है “आप पर शांति हो।” यह न केवल सम्मान का संकेत है, बल्कि एक प्रार्थना भी है जिसमें दोनों व्यक्ति एक-दूसरे के लिए शुभकामनाएं देते हैं। इस प्रकार, इस्लामी समाज में पैर छूने के बजाय, सलाम और सद्भावना के द्वारा सम्मान दिखाया जाता है।
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