नई दिल्ली : हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इसे बूढ़ी तीज, सातुड़ी तीज जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कजरी तीज के मौके पर सुहागिन […]
नई दिल्ली : हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इसे बूढ़ी तीज, सातुड़ी तीज जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कजरी तीज के मौके पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। जानिए कजरी तीज व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व।
कजरी तीज की तिथि – 14 अगस्त 2022, रविवार
भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि प्रारंभ – 13 अगस्त, शनिवार की देर रात 12 बजकर 53 मिनट से शुरू
तृतीया तिथि समाप्त – 14 अगस्त, रविवार को रात 10 बजकर 35 मिनट तक
इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन कुंवारी कन्याएं भी मनभावन पति को पाने के लिए व्रत लिए रखती हैं। माना जाता है कि अगर कुंवारी कन्या इस व्रत को रखती हैं और शाम के समय कजरी तीज की कथा का पाठ करती हैं तो जल्द ही भगवान शिव अच्छे जीवनसाथी पाने की कामना को पूर्ण कर देते हैं।
कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है जो माता पार्वती का ही स्वरूप हैं। महिलाएं सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि जरूर करें। साथ ही मां का मनन करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें। सबसे पहले आप माँ के लिए भोग बना लें। भोग में मालपुआ बनाया जाता है। इसके बाद पूजन के लिए मिट्टी या गोबर से छोटा तालाब बना लें। इस तालाब में नीम की डाल पर चुनरी चढ़ाकर नीमड़ी माता की स्थापना जरूर कर लें। नीमड़ी माता को हल्दी, मेहंदी, सिंदूर,सत्तू, चूड़िया, लाल चुनरी, और मालपुआ चढ़ाए जाते हैं। धूप-दीपक जलाकर आरती आदि कर लें। अंत में शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण कर लें।
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