नई दिल्ली: तुलसी, जो भारतीय संस्कृति में एक पवित्र और सम्मानित पौधा है, उसके बारे में एक दिलचस्प और ऐतिहासिक कथा प्रचलित है। यह कथा हमें बताती है कि कैसे राक्षस कुल में जन्मी वृंदा बाद में तुलसी के रूप में पूजी गई। जानिए कौन थी वृंदा और कैसे हुआ शालिग्राम और तुलसी का विवाह?
वृंदा एक राक्षसी कन्या थीं, जिनके पिता का नाम दानवराज कश्यप था। वृंदा का जन्म भले ही राक्षस कुल में हुआ, परंतु उनकी भक्ति, पवित्रता और धर्म का पालन किसी ऋषि-मुनि से कम नहीं था। उनका विवाह जालंधर नामक असुर से हुआ था, जो अपने पराक्रम और शक्ति के लिए विख्यात था। जालंधर की भक्ति और तपस्या से देवता भी विचलित हो गए थे, और उन्होंने उससे लड़ाई करना उचित समझा।
वृंदा एक समर्पित पत्नी थीं, जिनकी तपस्या के प्रभाव से जालंधर को अमरत्व का वरदान प्राप्त था। उनकी पत्नी धर्म के चलते जालंधर की रक्षा होती रही, लेकिन देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने एक चाल चली। विष्णु ने जालंधर का रूप धरकर वृंदा के पास गए और उनकी तपस्या को भंग कर दिया। इससे वृंदा के धर्म का उल्लंघन हुआ, और जालंधर युद्ध में मारा गया।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे। विष्णु ने उनका श्राप स्वीकार किया और शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गए। वृंदा का हृदय टूट गया और उन्होंने अपने जीवन का त्याग कर दिया। वृंदा के बलिदान और भक्ति को देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें तुलसी का रूप दिया और वरदान दिया कि वे सदैव पूजनीय रहेंगी।
हर वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) का विवाह तुलसी से किया जाता है। यह विवाह प्रेम, विश्वास और भक्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि इस विवाह को संपन्न करने से घर में सुख-शांति आती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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