Holi 2022: काशी में मनाई गई अजब होली, चिता की भस्म से खेली गई होली

Holi 2022: वाराणसी, होली (Holi 2022) रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-हर्षोल्लास का त्यौहार है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तौर तरीकों से मनाई जाती है, लेकिन मोक्ष की नगरी काशी की होली अन्य जगहों से काफी अलग, अद्भुत और अकल्पनीय है. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त महाश्मशान पर जलने वाली चिताओं की […]

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Holi 2022: काशी में मनाई गई अजब होली, चिता की भस्म से खेली गई होली

Aanchal Pandey

  • March 15, 2022 6:42 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

Holi 2022:

वाराणसी, होली (Holi 2022) रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-हर्षोल्लास का त्यौहार है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तौर तरीकों से मनाई जाती है, लेकिन मोक्ष की नगरी काशी की होली अन्य जगहों से काफी अलग, अद्भुत और अकल्पनीय है. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त महाश्मशान पर जलने वाली चिताओं की राख से तैयार भस्म से होली खेलते हैं. होली से 2 दिन पहले बनारस में मंगलवार को मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली गई. बनारस में मसान की यह होली काफी चर्चित है.

क्यों खास है मसान की होली?

बनारस में खेली जाने वाली मसान की होली इसलिए भी खास होती है क्योंकि यह होली भगवान शिव को अतिप्रिय है. ऐसा माना जाता है कि यहां साल के 365 दिन मसान से उड़ने वाली धूल लोगों का अभिषेक करती है, इसलिए इससे होली खेलना अच्छा माना जाता है. मणिकर्णिका घाट के अलावा, हरिश्चन्द्र घाट पर भी मसान की होली मनाई जाती है, लेकिन मणिकर्णिका घाट की इस मसान की होली का खास महत्व होता है.

बता दें कि मणिकर्णिका घाट में हजारों सालों से चिताएं जलती आ रही हैं. मसान की इस होली में जिन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें यज्ञों-हवन कुंडों या अघोरियों की धूनी और चिताओं की राख भी शामिल है. काशी में मनाई जाने वाली होली में राग-विराग दोनों है.

क्या है इसकी पौराणिक मान्यताएं?

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव ने मोक्ष देने के लिए प्रतिज्ञा ली थी, इसलिए काशी दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी मानी जाती है जहां मनुष्य की मृत्यु को मंगल माना गया है.

मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती का गौना करने के बाद देवगण और भक्तों के साथ बाबा भोलेनाथ होली खेलते हैं. लेकिन इस दौरान भूत-प्रेत, पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते. इसलिए अगले दिन बाबा भोलेनाथ मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता की भस्म से होली खेलते हैं.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक विश्वास और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.)

 

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