Holi 2021 : रंग खेलने से एक रात पहले क्यों जलाई जाती है होलिका, क्यों होलिका पूजन होता है अनिवार्य?

Holi 2021 : सद्मिलन, मित्रता, एकता, द्वेष भाव त्याग कर गले मिलने का रंगारंग पर्व होली,सोमवार 29 मार्च, को आ रहा है. लेकिन कोरोना के बढ़ने के कारण इसे सार्वजनिक रूप से न मनाएं. हालांकि फाल्गुन माह, रंगों, उमंगों, उत्साह, मन की चंचलता, कामदेवों के तीरों से भरा होता है.

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Holi 2021 : रंग खेलने से एक रात पहले क्यों जलाई जाती है होलिका, क्यों होलिका पूजन होता है अनिवार्य?

Aanchal Pandey

  • March 26, 2021 3:49 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

नई दिल्ली. सद्मिलन, मित्रता, एकता, द्वेष भाव त्याग कर गले मिलने का रंगारंग पर्व होली,सोमवार 29 मार्च, को आ रहा है. लेकिन कोरोना के बढ़ने के कारण इसे सार्वजनिक रूप से न मनाएं. हालांकि फाल्गुन माह, रंगों, उमंगों, उत्साह, मन की चंचलता, कामदेवों के तीरों से भरा होता है. महाशिवरात्रि के एकदम बाद, फाल्गुनी वातावरण सुरभ्य, गीत संगीत, हास परिहास, हंसी ठिठोली, हल्की फुल्की मस्ती, कुछ शरारतें, लटठ्मार आयोजन से ओतप्रोत हो जाता है. यह निष्छल प्रेम, रंगों के चरम स्पर्श की सिहरन को हुदय के भीतर तक आत्मसात करने का त्योहार है.

विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोगों को एक सूत्र में बांधने तथा राष्ट्रीय भावना जागृत करने की दृष्टि से हमारे देश में यह पर्व आरंभ किया गया था ताकि सभी वर्गों, समुदायों के लोग विविध रंगों और उत्साह में रंग कर सारे गिले शिकवे भूल जाएं और आने वाले नए वर्ष का स्वागत करें. प्रकृति भी अपने पूर्ण यौवन पर होती है. फाल्गुन का मास नवजीवन का संदेश देता है. यह उत्सव वसंतागमन तथा अन्न समृद्धि का मेघदूत है. जहां गुझिया की मिठास है, वहीं रंगों की बौछारों से तन मन भी खिल उठते हैं.

जहां शुद्ध प्रेम व स्नेह के प्रतीक, कृष्ण की रास का अवसर है वहीं होलिका दहन, अच्छाई की विजय का भी परिचायक भी है. सामूहिक गानों, रासरंग, उन्मुक्त वातावरण का एक राष्ट्रीय, धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहार है. इस त्योहार पर न चैत्र सी गर्मी है, न पौष की ठिठुरन, न आषाढ़ का भीगापन, न सावन का गीलापन …..बस वसंत की विदाई और मदमाता मौसम है. हमारे देश में यह सद्भावना का पर्व है जिसमें वर्ष भर का वैमनस्य, विरोध, वर्गीकरण आदि गुलाल के बादलों से छंट जाता है जिसे शालीनता से मनाया जाना चाहिए न कि अभद्रता से.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त 28 मार्च को शाम 18 बजकर 37 मिनट से रात्रि 20 बजकर 56 मिनट तक रहेगा यानि 02 घंटे 20 मिनट तब होलिका दहन का मुहूर्त बना हुआ है. इसी मुहूर्त में होलिका दहन करना अत्यंत शुभ है. इस वर्ष होलिका दहन के समय भद्रा नहीं रहेगी. होली रंगो का त्योहार इस वर्ष यह 29 मार्च 2021 को मनाया जाएगा, इससे पहले 28 मार्च को होलाष्टक समाप्ति के साथ होलिका दहन होगा. पूर्णिमा तिथि 28 मार्च 2021 दिन रविवार की रात में होलिका दहन किया जाएगा . भद्रा दिन में 1 बजकर 33 बजे समाप्त हो जाएगी. साथ ही पूर्णिमा तिथि रात में 12:40 तक ही व्याप्त रहेगी. शास्त्रानुसार भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि में ही होलिका दहन किया जाता है. इस कारण रात में 12:30 बजे से पूर्व होलिका दहन हो जाना चाहिए. क्योंकि रात में 12:30 बजे के बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी. होलिका दहन के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 56 मिनट तक.

अमृत काल – सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक. ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 50 मिनट से सुबह 05 बजकर 38 मिनट तक. सर्वार्थसिद्धि योग – सुबह 06 बजकर 26 मिनट से शाम 05 बजकर 36 मिनट तक. इसके बाद शाम 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक. अमृतसिद्धि योग – सुबह 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक.

होलिका दहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

होलिका दहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होली के आयोजन में अग्नि प्रज्जवलित कर वायुमंडल से संक्रामक जर्म्स दूर करने प्रयास होता है. कोरोना काल में होलिका दहन से वातावरण शुद्ध होगा. इस दहन में वातावरणशुद्धि हेतु हवन सामग्री के अलावा गूलर की लकड़ी,गोबर के उपले, नारियल, अधपके अन्न आदि के अलावा बहुत सी अन्य निरोधात्मक सामग्री का प्रयोग किया जाता है जिससे आने वाले रोगों के कीटाणु मर जाते हैं.जब लोग 150 डिग्री तापमान वाली होलिका के गिर्द परिक्रमा करते हैं तो उनमें रोगोत्पादक जीवाणुओं को समाप्त करने की प्रतिरोधात्मक क्षमता में वृद्धि होती है और वे कई रोगों से बच जाते है.

ऐसी दूर दृष्टि भारत के हर पर्व में विद्यमान है जिसे समझने और समझाने की आवश्यकता है. देश भर में एक साथ एक विशिष्ट रात में होने वाले होलिका दहन, इस सर्दी और गर्मी की ऋतु -संधि में फूटने वाले मलेरिया,वायरल, फलू और वर्तमान स्वाइन फलू आदि तथा अनेक संक्रामक रोग-कीटाणुओं के विरुद्ध यह एक धार्मिक सामूहिक अभियान है जैसे सरकार आज पोलियो अभियान पूरे देश में एक खास दिन चलाती है.

इस पर्व को नवानेष्टि यज्ञ भी कहते हैं क्योंकि खेत से नवीन अन्न लेकर यज्ञ में आहुति देकर फिर नई फसल घर लाने की हमारी पुरातन परंपरा रही है. प्राचीन काल में होली हिरण्यकश्यप जैसे राक्षस के यहां,प्रहलाद जैसे भक्तपुत्र का जन्म हुआ.अपने ही पुत्र को पिता ने जलाने का प्रयास किया. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती.इसलिए प्रहलाद को उसकी गोद में बिठाया गया.लेकिन सद्वृति वाला ईश्वरनिष्ठ बालक अपनी बुआ की गोद से हंसता खेलता बाहर आ गया और होलिका भस्म हो गई. 

मुस्लिम पर्यटक अल्बरुली ने अपने इतिहास में भारत की होली का विशेष उल्लेख किया है.

तभी से प्रतीकात्मक रुप से इस संस्कृति को उदाहरण के तौर पर कायम रखा गया है और उत्सव से एक रात्रि पूर्व, होलिका दहन की परंपरा पूरी श्रद्धा व धार्मिक हर्षोल्लास से मनाई जाती है. भविष्य पुराण में नारद जी युधिष्ठर से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सब लोगों को अभयदान देने की बात करते हैं ताकि सारी प्रजा उल्लासपूर्वक यह पर्व मनाए. जैमिनी सूत्र में होलिकाधिकरण प्रकरण, इस पर्व की प्राचीनता दशार्ता है. विन्ध्य प्रदेश में 300 ईसवी पूर्व का एक शिलालेख पूर्णिमा की रात्रि मनाए जाने वाले उत्सव का उल्लेख है. वात्सयायन के कामसूत्र में होलाक नाम से इस उत्सव का वर्णन किया है. सातवीं शती के रत्नावली नाटिका में महाराजा हर्ष ने होली का जिक्र किया है. ग्यारवीं शताब्दी में मुस्लिम पर्यटक अल्बरुली ने अपने इतिहास में भारत की होली का विशेष उल्लेख किया है.

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