नई दिल्ली. हिंदू नव वर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनायी जाती है. ऐसा माना जाता है की सूर्य की प्रथम किरण धरती पर इसी दिन पड़ी थी . ब्रह्मा जी ने भी सृष्टि की रचना की इसी दिन की थी एवं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , एवं रविवार को तिथि को ही सृष्टि की रचना हुई थी . इस वर्ष भी रविवार के दिन ही विक्रम संवत २०७५ शुरू हो रहा है , इस संवत्सर के इस दिन शुरू होने से भाग्यवर्धक रहेगा. भगवान विष्णु भी अपने प्रथम मत्स्य अवतार के रूप में इसी दिन प्रकट हुए थे. इसी दिन से चैत्र नवरात्र की शुरुआत भी होती है. कल्प, सृष्टि ,युगादि का यह प्रथम दिन हिंदू धर्म में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है .
सम्राट विक्रमादित्य ने ५७ ईसा पूर्व , उज्जैन में, अपनी विजय के उपलक्ष्य में इस दिन को नव वर्ष के रूप में मनाने की शुरुआत की थी. तभी से नव वर्ष को इसी दिन बड़े धूम धाम से मनाया जाता है एवं संवत्सर को भी इसीलिए विक्रम संवत्सर बोला जाता है. इस दिन उन्होंने अपनी समस्त प्रजा के सभी ऋणो को माफ़ कर दिया था एवं घोषणा की थी की राजा एवं प्रजा के मध्य यह एक नयी शुरुआत का दिन है एवं इसी उपलक्ष्य में इस दिन को, जो सृष्टि की रचना के लिए वैसे ही बहुत महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन को नव वर्षके रूप में मनाया जाएगा .
विक्रम संवत्सर में भारतीय पंचांग एवं समय की गणना का व्याख्यान बहुत क्षुश्मस्तर पर किया गया है, जो दिन प्रतिदिन इतनीसदियों बाद भी पूर्णत: सटीक बैठता है. इस वर्ष “विरोधकृत” नामक, विक्रम सम्वत, 2075 के राजा सूर्य रहेंगे एवं मंत्री शनि रहेंगे.यह संवत्सर आपसी टकराव की स्तिथियाँ बना सकता है .
इस दिन से ही चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत हो जाती है. पूरे भारतवर्ष में एक दिन पहले से ही मंदिर सजने शुरू हो जाते हैं. प्रातः काल उठ कर सभी सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं . ईश्वर का आहवाहन कर, घर को सजाया जाता है. नए वस्त्र पहन कर पूजन अरचनकिया जाता है एवं कुल के पंडित जी आ कर संवत्सर घर वालों के लिए कैसा रहेगा वह पड़ते हैं एवं राशि अनुसार उनका व्याख्यान भीकरते हैं. उन्हें दान दक्षिणा दे कर विदा किया जाता है. परिवार में समस्त बुज़ुर्गों के एवं अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिए जाता है. कुलदेवता या कुल देवी का पूजन अर्चन, प्रातः काल सर्वप्रथम किया जाता है . घर के मुख्य द्वार को तोरण से सजाया जाता है. ख़ास कर आम के पत्तों का फूलों के साथ गांछ कर तोरण बनाने का विधान है. आँगन में रंगोली बनायी जाती है, घर में नए पकवान बनते हैं , मिठाई आदि बाँटी जाती हैं एवं सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएँ भी दीजाती हैं. हिन्दू नव वर्ष की महत्वता पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है. ग़रीबों को दान किया जाता है, प्रातः काल बेसन एवं हल्दीके ऊबटन से स्नान किया जाता है एवं कई घरों में ईश्वर का आवाहन कर , वर्ष भर विजयी कामना के साथ पताका फहराई जाती है.
संवत्सर का नाम एवं आने वाले वर्ष में उसका असर:
“विरोधकृत” नामक , विक्रम सम्वत , 2075 के राजा सूर्य रहेंगे एवं मंत्री शनि रहेंगे. जिस वार को नव वर्ष शुरू होता है उस वार कास्वामी संवत्सर का राजा होता है . सूर्य की मेष संक्रान्ति के दिनजो वार रहता है वह उस संवत्सर का मंत्री होता है. इस वर्ष सूर्य की मेष संक्रान्ति शनिवार के दिन पड़ रही है जिस वजह से मंत्री शनि मानेजाएँगे . इस संवत्सर के सेनापति शुक्र रहेंगे. ज्येष्ठ मास अधिक होने की वजह से , ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा , १६ मई २०१८ को ‘परिधावी’ नामक संवत्सर का प्रवेशहोगा . लेकिन किसी भी नए संकल्प आदि के लिए विरोधकृत संवत्सर को ही ध्यान में रखा जाएगा .
सूर्य एवं शनि में परस्पर शत्रुता रहती है , इस वजह से इस वर्ष आपसी मतभेद अग्रसर रहेंगे. गवर्न्मेंट एवं प्रजा में आपसी टकराव की स्तिथियाँ भी बड़ सकती हैं. सूर्यअग्नि तत्व के स्वामी एवं शनि वायु तत्त्व के स्वामी होने से आगज़नी आदि की संभावनायीं , आकाशीय / हवाई दुर्घटनाओं में वृद्धि हो सकती हैं . इस वर्ष गरमी एवं लू पिछले वर्षों से अधिक रहेगी. सूर्य के राजा होने से सरकार कुछ ठोस क़दम उठा सकती है. आपसी राजनीतिक पार्टीयों में मनमुटाव की स्तिथियाँ बन सकती हैं .महँगाई इस वर्ष बड़ेगी. ऐक्सिडेंट, भूकम्प आदि की संभावनाएयीं बड़ जाएंगी. किसी विशिष्ट व्यक्ति के अचानक से दिवंगत होने का समाचार भी प्राप्त हो सकता है.
सूर्य के राजा होने से अन्तर्राष्ट्रीयस्तर पर ख्याति बड़ सकती है. भारत में कुछ एक महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा लिए जाएंगे जो आने वाले समय में प्रगति का मार्गप्रशस्त करेंगे. उच्चाधिन शुक्र के सेनापति होने से व्यापार में वृद्धि होगी , विदेश नीतियों में नए प्रयोग एवं संधि हो सकती हैं. जन मानस के कल्याण के लिए कुछविशेष निर्णय लिए जा सकते हैं.
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