Hartalika Teej Vrat Katha: देशभर में हरतालिका तीज का त्योहार 1 सितंबर को धूमधाम से मनाया जाएगा. उत्तर प्रदेश और बिहार के तो करीब हर एक घर में हरतालिका तीज की तैयारी भी शुरू हो चुकी है. आज हम आपको बता रहे हैं हरतालिका तीज व्रत कथा और पूजा विधि.
नई दिल्ली. देश के कई इलाकों में हरतालिका तीज की तैयारियां शुरू हो गई हैं. मान्यता है कि महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए हरतालिका तीज के दिन व्रत करती हैं. इस साल 1 सितंबर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी. हरतालिका तीज के मौके पर सभी सुहागनें नए वस्त्रों के साथ हाथों में मेहंदी और श्रृंगार कर मां पार्वती और शिव जी की पूजा करती हैं. कई इलाकों में हरतालिका तीज पर सास अपनी बहुओं को नए कपड़े व जेवर भी तोहफो में देती हैं. हरतालिका तीज प्रत्येक वर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है.
हरतालिका तीज का व्रत काफी ज्यादा कठिन बताया जाता है. इस दिन महिलाएं करीब 24 घंटे या उससे ज्यादा समय तक (शुभ मुहूर्त के अनुसार) निर्जला रहकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस दिन व्रत के बाद महिलाएं न जल ग्रहण कर सकती हैं और न ही अन्न. कहा जाता है कि सबसे पहले मां पार्वती ने हरतालिका तीज का व्रत रखा था जिसके फलस्वरूप में उन्हें भोलेनाथ भगवान पति के रूप में प्राप्त हुए थे.
हरतालिका तीज पूजा विधि
हरतालिका तीज पर सुबह और शाम दोनों समय की पूजा को शुभ माना जाता है. हरतालिका पर पूजा करने से पहले भक्त स्नान आदि करने के बाद नए वस्त्र पहन ले. फिर मिट्टी से बनी शिव जी औ मां पार्वती की मूर्ति का पूजन करें. अगर ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो दोनों का एक फोटो रखकर भी पूजा कर सकते हैं. पूजा के लिए एक नया कपड़ा बिछाकर उसपर मूर्ति का फोटो रखें और पूजन शुरू करें. सबसे पहले पूजा का संकल्प लें जिसके बाद मां पार्वती और शिव जी को चंदन अर्पित करें. साथ ही धूप, दीप, फूल, मिठाई और बेलपत्र आदि अर्पित करें. जिसके बाद हरतालिका तीज की व्रत कथा सुने या पढ़े.
हरतालिका तीज व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मां पार्वती कई जन्मों से शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थी. इसके लिए मां पार्वती ने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या भी की. मां पार्वती ने इस तपस्या के दौरान अन्न और जल ग्रहण नहीं किया. इस दौरान उन्होंने सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही पूरा तप किया. माता को इस अवस्था में देखकर उनके परिजन बहुत दुखी थे.
एक दिन नारद मुनि विष्णु जी की ओर से पार्वती माता के विवाह का प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए. उनके पिता तुंरत मान गए लेकिन जब मां पार्वती को यह ज्ञात हुआ तो उनका मन काफी दुखी हुआ और वे रोने लगीं. मां पार्वती को इस पीड़ा से गुजरता देख एक सखी ने उनकी माता से कारण पूछा. देवी पार्वती की माता ने बताया कि पार्वती शिव जी को पाने के लिए तप कर रही है लेकिन उनके पिता विवाह विष्णु जी से करना चाहते हैं. पूरी बात जानने के बाद सखी ने मां पार्वती को एक वन में जाने की सलाह दी.
मां पार्वती ने सखी की सलाह मानते हुए वन में जाकर शिव जी तपस्या में लीन हो गईं. भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाया और शिव स्तुति करने लगी. मां पार्वती ने रात भर शिव जी का जागरण किया. काफी कठोर तपस्या के बाद शिव जी ने मां पार्वती को दर्शन देकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.
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