नई दिल्ली, Hartalika teej 2022: हिंदू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का पर्व पड़ता है. शास्त्रों के अनुसार, हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है, वैसे हरतालिका तीज से पहले हरियाली और कजरी तीज भी मनाई जाती है. हरतालिका तीज में भगवान शिव और […]
नई दिल्ली, Hartalika teej 2022: हिंदू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का पर्व पड़ता है. शास्त्रों के अनुसार, हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है, वैसे हरतालिका तीज से पहले हरियाली और कजरी तीज भी मनाई जाती है. हरतालिका तीज में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है और सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं.
मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, ऐसे में इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखकर पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखती हैं. हरतालिका तीज व्रत को सुहागिनों के अलावा कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से कुंवारी कन्याओं को भगवान शिव जैसी वर की प्राप्ति होती है.
हरतालिका तीज व्रत इस साल 30 अगस्त 2022 को रखा जाएगा, इस दिन सुबह साढ़े छह बजे से लेकर 8 बजकर 33 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहने वाला है. जबकि शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक प्रदोष काल रहने वाला है.
यूपी, बिहार और झारखंड में हरतालिका तीज का पर्व बहुत ही अच्छे से मनाया जाता है, हर जगह तीज व्रत की अलग-अलग परंपरा है. वहीं, झारखंड में इस व्रत में पहले जावा बनाया जाता है और बाद में उसे विसर्जित कर दिया जाता है.
जावा बनाने के लिए महिलाएं पास की नदियों पर जाता हैं और वहां से बालु निकालती हैं, और पैदल चलकर गीत गाते हुए घर में जावा स्थापित करती हैं. इसके लिए भादो तृतीय का दिन चुना जाता है, बता दें हरतालिका व्रत शुरू होने के 2 दिनों पहले बालू में जौ, उड़द, मक्का, धान आदि डाल दिए जाते हैं, जिसे ‘जावा’ कहा जाता है. जावा को हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव के रूप में माना जाता है और निर्जला व्रत रखकर इसकी विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है. हरतालिका तीज में सुहागिनें पति की दीर्घायु और परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैं, वहीं पूजा समाप्त होने के बाद दूसरे दिन सुबह जावा को विधि-विधान से तालाब, नदी आदि जलाशयों में विसर्जित कर महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं, इसकी विशेष मान्यता होती है.
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