नई दिल्ली: गुरु नानक जयंती, जिसे ‘प्रकाश पर्व’ भी कहा जाता है, सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह पर्व न केवल भारत में बल्कि विश्वभर के सिख समुदाय द्वारा बड़े हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन को “प्रकाश पर्व” के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस दिन को गुरु नानक के रूप में दुनिया में ‘ज्ञान का प्रकाश’ आने के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
इस साल गुरु नानक देव जी की 555वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जा रही है। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में पंजाब के तलवंडी नामक गांव में हुआ था, जो आज के पाकिस्तान में स्थित है और अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। वे बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित थे और उन्हें संसार के सत्य को समझने की प्रबल इच्छा थी। उनके उपदेशों ने समाज में सुधार लाने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण संदेश दिए, जैसे कि “एक ओंकार” यानी ईश्वर एक है, सबके लिए समान है। गुरु नानक देव जी ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, ऊंच-नीच और धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से करुणा, ईमानदारी, और भाईचारे की भावना को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखनी चाहिए और अपने कर्मों से समाज की सेवा करनी चाहिए।
गुरु नानक जयंती को “प्रकाश पर्व” इसलिए कहा जाता है क्योंकि गुरु नानक जी ने ज्ञान, सत्य, और करुणा का दीप जलाया। उन्होंने उस समय की अंधकारपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को अपने उपदेशों से बदलने का प्रयास किया और लोगों को नैतिकता का मार्ग दिखाया। उनके उपदेश मानवता के लिए प्रकाश की किरण बन गए, जो अज्ञानता और बुराई से मुक्त करने का प्रतीक हैं।
इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह लोगों को गुरु नानक जी के जीवन और उनके सिद्धांतों को अपनाने का संदेश देता है। गुरु नानक जी ने हमेशा कहा कि सच्चा इंसान वही है जो सबके साथ प्रेम और समानता का व्यवहार करता है। उनके सिद्धांत आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने कि उस समय थे, क्योंकि समाज में प्रेम, सद्भावना, और समानता की जरूरत हमेशा होती है।
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