अध्यात्म

Gangaur 2018: जानिए क्यों मनाया जाता है गणगौर का त्यौहार, क्या है इसका महत्व और पौराणिक कथा

नई दिल्ली. गणगौर उत्सव मुख्यतः राजस्थान में मनाया जाने वाला त्योहार है जिसमें गण ( शिव) एवं गौर (यानी गौरी मां ) की पूजा की जाती है. यह त्योहार गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा के कुछ भागों में भी मनाया जाता है. राजस्थान में तो गण ग़ौर के समाप्ति पर त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है एवं झाँकियाँ भी निकलती हैं. मारवाड़ियों का यह एक प्रमुख त्योहार है एवं 16 दिन के लिए चलता है. वहीं पर मध्य प्रदेश में निमाड़ि समुदाय भी इसे उतने हो उत्साह से मानते हैं लेकिन वे इस त्योहार को तीन दिन मानते हैं. शिव जी यानी की गण /इशर जी एवं माता पार्वती यानी की ग़ौर, इनका इस रूप में पूजन होता है.

मान्यता है की शिव जी ने पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था एवं माता पार्वती ने यही वरदान उनको शिव सहित पूजने वाली समस्त महिलाओं को दिया जो इन दिनो में उनका विधि पूर्वरक पूजन करती हैं. होली के दूसरे दिन से इस त्योहार को शुरू किया जाता है. चैत्र शुक्ल तृतीया को यह त्योहार सम्पन्न होता है. इस सोलह दिनो के त्योहार में महिलाएँ बगीचे से दूर्वा एवं फूल चुन कर लाती हैं, फिर दूर्वा को दूध में डूबा कर उसके छींटे मिट्टी से बनी हुई गणगौर माता को दिए जाते हैं. मां को दही का भोग, सुपारी , चांदी का छल्ला, जल आदि अर्पित किया जाता है. आठवें दिन कुम्हार के यहां से मिट्टी लायी जाती है इस मिट्टी से इशर जी ( शिव जी) एवं गणगौर माता की मूर्ति बनायी जाती है. साथ ही में छोटी छोटी और भी मूर्तियां बनायी जाती हैं.

इससे एक दिन पहले यानी की चैत्र शुक्ल द्वितियां को महिलाएं पूर्ण शृंगार कर अपने गणगौर को सरोवर, तालाब या फिर कुएं में जल पिलाने के लिए झाँकियों में जाती हैं एवं इसके दूसरे दिन यानी की तृतीया तिथि को इसे संध्या को विसर्जित किया जाता है. जिस घर में गणगौर माता बैठाई जाती है उसे माता पार्वती का मायका एवं जिस सरोवर में उन्हें विसर्जित किया जाता है उसे माता का ससुराल माना जाता है. इन पूरे सोलह दिनो में महिलाएँ हर उपलक्ष्य के लिए अलग अलग गीत गाती हैं. इस दिन विवाहिताएं एवं कुंवारी कन्याएं दोनो ही उपवास रख कर शिव एवं गौरी का पूजन करती हैं. पूर्ण रूप से श्रृंगार कर विवाहिताएं अपने सुहाग की रक्षा एवं उनका प्रेम प्राप्त करने के लिए एवं कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए पूजन करती हैं.

गणगौर पौराणिक कथा :
एक समय भोलेनाथ एवं माता पार्वती होली समाप्त होने के पश्चात उसके दूसरे दिन से भ्रमण पर निकले हुए थे, उन्ही के साथ नारद मुनि भी भ्रमण कर रहे थे. चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वह एक गांव में पहुंचे. गांव के लोगों को जैसे ही भगवान शिव शक्ति के आगमन का पता चला, सभी अपने अपने सामर्थ्य अनुसार उनकी पूजा के लिए तय्यारी करने लगे. गांव की समृद्ध घर की स्त्रियां उनके लिए विभिन्न पकवान बनाने लग गयीं वहीं पर साधारण परिवार की स्त्रियों ने हल्दी एवं कुमकुम से ही उनका स्वागत करने पहुंच गयी. उनके इस अनुराग से ख़ुश होकर माता पार्वती ने अपने समस्त तेज़ में से सौभाग्यवती होने का वरदान उन्हें दिया. कुछ समय पश्चात जब समृद्ध घर की महिलाएं भोग आदि लेकर समक्ष पहुंची तो शिव जी ने माता से पूछा की अब आप क्या करेंगी क्योंकि समस्त सौभाग्य का वरदान तो आप दे चुकी हैं. तब माता ने कहा की मैं इनकी भी भक्ति से ख़ुश हूं एवं मैं इन्हें अपने ऊंगली से निकले रक्त से सुहाग का वरदान दूंगी. भोजन आदि के पश्चात माता ने अपनी ऊंगली चीर कर रक्त के छींटे उन सभी महिलाओं पर डाले एवं उन्हें भी सौभाग्य का वरदान दिया.

इसके बाद माता पार्वती नदी तट पर स्नान की आज्ञा लेकर तट पर पहुंची. तट पर पड़ी बालू और मिट्टी देख कर उनसे रहा नहीं गया एवं उन्होंने उसी से शिवलिंग बना कर महादेव की पूजा की. उसके बाद मिट्टी से ही उन्होंने नैवैद्य बन कर शिवलिंग को अर्पण किए एवं बालू के दो दाने अपने मुंह पर भी प्रसाद के रूप में रखे. जब वो वापस आयी तो शिव जी ने उन्हें देरी का कारण पूछा तो उन्होंने बहाना बना कर बोला की मेरे मायाके वाले मिल गए थे एवं उन्होंने मुझे दूध शक्कर एवं खीर का भोजन दिया और बात करते करते देरी हो गयी. भोलेनाथ तो भोलेनाथ हैं , उन्होंने भी जिद्द की और अपने ससुराल वालों से मिलने तट की तरफ बड़े. अब माता पार्वती को समझ में नहीं आया की क्या करें तो उन्होंने अपनी माया से वहां महल बना दिया.

शहिव जी का ख़ूब आदर सत्कार हुआ एवं तीसरे दिन उन्होंने वहां से प्रस्थान किया. अभी थोड़ा सा आगे बड़े ही थे की उन्होंने कहा की में तो अपनी माला वही भूल आया हूं, तो माता पार्वती दुविधा में आ गयी क्योंकि माया जाल तो उन्होंने खत्म कर दीया था. बहुत आग्रह करने पर भी शिव जी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति नहीं दी , अंत में नारद मुनि उस स्थान पर से शिव जी की माला लाने पहुँचे। लेकिन देखते कए हैं की वह स्थान तो वीरान तट है , ना तो वहाँ महल है ना हो कोई लोग. नारद मुनि को समझ में नहीं आ रहा था की बिना माला के वह वापस कैसे पहुंचे, माता पार्वती का स्मरण कर मन ही मन आग्रह करने लगे की ही मां अब आप ही बताएं की शिव माला किधर पड़ी है. तभी अचानक से बिजली कौंधी एवं नारद मुनि को वह माला एक पेड़ पर लटकी मिली. माता को धन्यवाद देते हुए वह वापस शिव शक्ति के पास पहुंचे. माला शिव जी को सौंपी एवं हिम्मत कर पाना वृतांत सुनाया.

शिव जी मुस्कुराए एवं बोले, “ हे ! नारद मुनि, ये तो आपकी माता की माया है , उन्होंने नदी तट पर मेरा पूजन किया था एवं वापस अपने सुहाग का तेज ग्रहण किया था, वह चुप कर इस व्रत को पूर्ण कर रही थी और उसमें सफल भी रही.” शिव जी मुस्कुराए एवं बोले. “मैं तो केवल उनके इस व्रत की तपस्या को आंक रहा था” . उन्होंने मां पार्वती को वरदान दिया की होली के दूसरे दिन से जो भी स्त्री आपकी ही तरह गुप्त रूप से इस व्रत को करेगी एवं चैत्र शुक्ल तृतीया को इस व्रत का पारण करेगी उन्हें भी आपकी ही तरह अखंड सुहाग एवं सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसी कथा के चलते आज भी महिलाएँ इस व्रत को पुरुषों से चुप कर करती हैं.

गणगौर की झांकियाँ :
वैसे तो गणगौर की झांकियां स्त्रियां गणगौर की मूर्तियां लेकर करती हैं पर राजस्थान में कई स्थानो में विभिन्न तरह से भी मेले निकलते हैं. जोधपुर में गणगौर के उपलक्ष्य में लोटों को सर पर सज़ा कर झांकी निकाली जाती है. महिलाएं गीत गाते हुए झांकी निकालती हैं. सम्पूर्ण राजस्थान में इशर जी एवं माता गौरी की झांकियां निकलती हैं. बीकानेर में चांदमल की झांकी बहुत प्रसिद्ध है तो वहीं पर उदयपुर की धिंगा झांकी का भी अपना ही विशशित स्थान हैं.

स्त्रियां झूमते नाचते गाते बगीचों में जाती हैं. उन्मे से दो स्त्रियां इशर जी एवं गणगौर माता के रूप में सज कर चलती हैं. यह त्योहार शंकर पार्वती की सुखी दाम्पत्य को, उनके प्रेम को दर्शाता है एवं महिलाएं भी इसी प्रेम को गीत में एवं नृत्य में झलक कर उत्सव रूप में मनाती हैं. बग़ीचे में पहुंच कर इशर जी एवं गणगौर माता के रूप में स्त्रियां पीपल के पेड़ के साथ फेरे लोक गीत गा गर लेती हैं, उसके पश्चात ख़ूब मस्ती में नाच गाना आपस में कर वापस घर लौटती हैं. दूसरे दिन दोपहर को माता गणगौर को विसर्जित किया जाता है. माली को इस पूजन के दौरान इकट्ठा हुआ चढ़ाव भेंट स्वरूप दिया जाता है.

~ नन्दिता पाण्डेय,
ऐस्ट्रो-टैरोलोजर , आध्यात्मिक गुरु
email : soch.345@gmail.com, +91 9312711293
website : www.nanditapandey.biz

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Aanchal Pandey

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