नई दिल्ली: महाभारत ग्रंथ हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि महाभारत का लेखन महर्षि वेदव्यास द्वारा किया गया था, परंतु महाभारत के लिखे जाने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जो गणेश जी और वेदव्यास के बीच के संवाद से संबंधित है। इस कथा में एक ऐसा प्रसंग भी मिलता है जिस कारण गणेश जी एकदंत कहे जाते हैं।
भगवान गणेश को हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य देव के रूप में भी जाना जाता है। भगवान गणेश को लेकर कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं, जिसमें से एक यह है कि वेदव्यास द्वारा बोली गई महाभारत को गणेश जी ने लिपिबद्ध किया। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार हिमालय में वेदव्यास तप कर रहे थे, तभी वहां ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने वेदव्यास से कहा कि वह महाभारत महाकाव्य की रचना करें, क्योंकि पूरी महाभारत देखने वाले केवल वेदव्यास ही थे और वह सभी पात्रों को भी भली-भांति जानते थे, इसलिए इस महाकाव्य की रचना के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें ही चुना। इसके बाद वेदव्यास ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो महाभारत जैसे जटिल महाकाव्य की श्रुतलेख कर सके। इस समस्या के समाधान के लिए वेदव्यास वापस ब्रह्मा जी से मिलने गए और ब्रह्मा जी ने गणेश जी का नाम सुझाया। क्योंकि गणेश जी की लिखावट तेज और सुंदर थी।
जब महाभारत की रचना का प्रस्ताव लेकर वेदव्यास भगवान गणेश के पास पहुंचे, तो गणेश जी ने उनके सामने एक शर्त रख दी। भगवान गणेश ने कहा कि वह महाकाव्य तभी लिखेंगे, जब व्यास उन्हें बिना रुके पूरी कहानी सुनाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि अगर वेदव्यास बीच में रुक गए तो वह लिखना बंद कर देंगे। भगवान गणेश की इस शर्त को वेदव्यास जी ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद गणेश जी के सामने वेदव्यास ने शर्त रखी कि वह पहले वाक्य या श्लोक को पूरी तरह से समझेंगे और उसके बाद ही लिखेंगे। वेदव्यास की यह शर्त भी गणेश जी ने स्वीकार कर ली और उन्होंने महाभारत लिखना शुरू कर दिया। गणेश जी की इतनी तेज लिखाई थी,जिसके कारण वेदव्यास बोलते-बोलते थक जाते थे।
जिसस समय भगवान गणेश महाभारत जैसे महाग्रंथ को लिख रहे थे, तो बार-बार उनकी लेखनी टूट जाती थी। इस कारण से उनकी गति में काफी अवरोध उत्पन्न होता था। तब भगवान गणेश ने अपना एक दांत तोड़कर उनकी लेखनी बनाई, जिससे महाभारत बिना किसी रूकावट के लिखा जा सके। इसके बाद महाभारत को लिपिबद्ध करने का कार्य सुचारू रूप से चला। बस इसी कारण भगवान गणेश ‘एकदंत’ भी कहलाए।
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