Ganesh Chaturthi 2019: देशभर में गणपति उत्सव की धूम मची है. इस उत्सव को पूरा देश बड़े ही धूम-धाम से मनाता है, लकिन मुंबई में इस उत्सव की धूम और साजो-सजावट देखते ही बनती हैं. वहां गणपति उत्सव की तैयारियां पर्व के शुरु होने से काफी समय पहले से ही शुरु हो जाती है. ऐसी खास मौके पर मुंबई के लालबाग के राजा के दरबार की रौनक भी देखते ही बन रही है. यहां आम आदमी से लेकर सितारों तक की भारी भीड़ आती है. मुंबई के लालबाग के राजा को मन्नतों का राजा भी कहा जाता है, जानिए क्यों.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. इस समय पूरे देश में गणपति उत्सव की धूम मची हुई है. हर कोई गणपति उत्सव की तैयारियो में लगा हउआ है. हर साल की तरह इस साल भी सब गणपति का स्वागत बड़े ही धूम-धाम के साथ करना चाहता है. इस बार ये उत्सव 2 सितंबर से शुरु होगा और 12 सितंबर तक चलेगा. यानी की 9 से 10 दिनों तक आपको गणपति की दिल से जमकर सेवा करने का मौका मिलेगा. इन दिनों हर कोई बस गणपति की सेवा में लगा रहता है. ये उत्सव सारे देश के साथ-साथ मुंबई में बेहद ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, क्योंकि इन दिनों यहां लालबाग के राजा के दरबार देखने में बेहद भव्य लगता है.
यहां आम आदमी से लेकर सितारों तक की भारी भीड़ आती है. मुंबई के इन लालबाग के राजा को कई नामों से जाना जाता है. जैसे लालबाग के गणपति, रूप एक, दिव्य गजानन गणपति, लालबाग के राजा के एक रुप को ही अनेक नानों से जाना और पूजा जाता है. लालबाग के राजा की सबसे बड़ी मान्यता यह है कि उनको मन्नत का गणपति कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि वो अपने भक्त द्वारा मागी गई हर मन्नत पूरा करते हैं और इस मान्यता के पीछे भी एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है.
ऐसा भी माना जाता है कि लालबाग के राजा का दरबार पूरे देश का सबसे बड़ा गणपति पंडाल है, जहां सिर टेकने के लिए आम आदमी से लेकर बड़े आदमी तक आते हैं और यहां हाजिरी लगाकर खुद को धन्य मानते हैं. हर किसी के मन्नत को पूरा करने वाले लालबाग के राजा सभी की मन्नत पूरी करते है इसका इतिहास और भी दिलस्प है.लालबाग के राजा की कहानी इस प्रकार है. आज जहां पर लालबाग के राजा विराजमान हैं, पहले वहां पर अंग्रेजों के जमाने में मिल मजदूर रहा करते थें. उसके बाद साल 1930 में विकास के नाम पर उनको वहां से निकला दिया गया, जिसके बाद उन लोगों ने श्री गणपति महराज से ये मन्नत मांगी कि अगर उनके सर की छत बची रही तो वो गणपति जी की प्रतिमा वहां स्थापित करेंगे.
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बस फिर क्या था श्री गणेश किसी की मन्नत ना माने ऐसा हो ही नहीं सकता. हर किसी सचे भक्त की तरह उन्होंने उनकी भी मन्नत मान ली. बेघर लोगों को नई जगह के साथ-साथ सर पर छत भी मिल गई और उन्होंने अपनी मन्नत मानते हुए वहां उसी समय पर गणपति की एक मुर्ति के स्थापना की और उनको दिया नया नाम, मन्नतों के गणपति. तब से यहां बड़े ही भव्य अंदाज में पूजा-अर्चना होने लगी. लोग यहां दूर-दूर से आते और अपनी-अपनी मन्नत मानते. आज भी ये सिलसिला यू हीं बरकरार है. बता दें कि यहां हर साल उत्सव में गणपति का रुप बदला जाता है. यहां लाखों-करोड़ों की तादात में चढ़ावा आता है, जिससे गरीबों का पेट भरता और वहां रहने वाले मजूबर लोगों की मदद की जाती है.