विष्णु- शंकर की पूजा सब करते हैं, ब्रह्मा की क्यों नहीं? जानिए इसके पीछे की कथा

Brahma ji: हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिमूर्ति कहा जाता है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता, भगवान विष्णु पालनहार और महादेव संहार के देवता माने जाते हैं। त्रिदेवों में से विष्णु और शिव जी की पूजा पूरी दुनिया करती है लेकिन ब्रह्मा जी की पूजा कोई नहीं करता है। क्या आपको इसके […]

Advertisement
विष्णु- शंकर की पूजा सब करते हैं, ब्रह्मा की क्यों नहीं? जानिए इसके पीछे की कथा

Pooja Thakur

  • August 29, 2024 10:07 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

Brahma ji: हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिमूर्ति कहा जाता है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता, भगवान विष्णु पालनहार और महादेव संहार के देवता माने जाते हैं। त्रिदेवों में से विष्णु और शिव जी की पूजा पूरी दुनिया करती है लेकिन ब्रह्मा जी की पूजा कोई नहीं करता है। क्या आपको इसके पीछे की वजह मालूम है? चलिए जानते हैं इसके पीछे क्या कथा है।

ब्रह्मा जी की इसलिए नहीं होती पूजा

ब्रह्मा जी न सिर्फ सृष्टि के रचयिता है बल्कि उन्होंने वेदों का ज्ञान भी दिया। पृथ्वी लोक पर ब्रह्मा जी के कई मंदिर हैं लेकिन वहां उनकी पूजा नहीं की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार ब्रह्माजी ने धरती लोक की भलाई के लिए यज्ञ करने की सोची। इसके लिए इन्होंने राजस्थान के पुष्कर शहर को चुना। ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंचे लेकिन उनकी पत्नी सावित्री शुभ मुहूर्त तक नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकलने लगा तो ब्रह्मा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया।

पत्नी ने दिया श्राप

ब्रह्मा जी ने गायत्री से विवाह करके यज्ञ पूरा किया। जब सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो ब्रह्मा जी के बगल के किसी अन्य स्त्री को बैठा देखकर क्रोधित हो उठी। उन्होंने तत्काल ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि इस पृथ्वी पर कभी तुम्हारी पूजा नहीं होगी। बाद में गुस्सा शांत होने पर देवताओं ने उन्हें मनाया तब उन्होंने कहा कि धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही लोग ब्रह्मा जी की पूजा करेंगे। अगर कोई कही और करने की कोशिश करेगा तो उसका विनाश हो जायेगा। हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर में बहुत बड़ा मेला लगता है। इसे पुष्कर मेला कहते हैं। आस पास के इलाके से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं लेकिन ब्रह्मा जी की पूजा नहीं करते हैं।

 

कटोरे में रखे वीर्य से हुआ द्रोणाचार्य का जन्म, अप्सरा को देखकर खुद पर काबू नहीं कर पाए थे पिता भारद्वाज

Advertisement