नई दिल्ली: गुड फ्राइडे के बाद इस संडे को यानी आज 31 मार्च को ईस्टर संडे के नाम से जाना जाता है. शुक्रवार, 29 मार्च को गुड फ्राइडे मनाया गया था और ईस्टर संडे जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है रविवार, 31 मार्च को मनाया जा रहा है. यह दिन मुख्य रूप से ईसा मसीह से संबंधित है. ऐसे में आइए जानते हैं कि ईस्टर को यह नाम कैसे मिला.
ईस्टर के अवसर पर लोग चर्च या गिरजाघर में जाकर प्रार्थना करते हैं और प्रभु यीशु को याद करके उनका आभार व्यक्त करते हैं. लोग एक-दूसरे को ईस्टर की बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं. मान्यता है कि ईस्टर के 40 दिन तक ईसा मसीह धरती पर रहे, और बाद में स्वर्ग को चले गए. यही वजह है कि इस फेस्टिवल को 40 दिनों तक मनाने की परंपरा है. साथ ही इस दिन अंडों का भी विशेष महत्व माना गया है. ईस्टर के अवसर पर लोग अंडों को अलग-अलग तरह सजाते हैं और एक दूसरे को तोहफे में अंडे देते हैं.
ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार “ईस्टर” शब्द की उत्पत्ति ‘ईस्त्र’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है पुनरुत्थान. क्योंकि गुड फ्राइडे के बाद आने वाले ईस्टर संडे को प्रभु यीशु दुबारा जीवित हुए थे. इसलिए इस दिन को ईस्टर संडे के रूप में मनाया जाने लगा. वहीं अन्य मान्यताओं के अनुसार, ईस्टर शब्द की उत्पत्ति जर्मन के ईओस्टर शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है देवी. यह देवी वसंत की देवी मानी जाती हैं.
ईसाई धर्म के लोग ईस्टर संडे के अवसर पर परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर चर्च में जुटते हैं और इस दिन का जश्न मनाते हैं. बता दें, कि गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था. ऐसे में उनके अनुयायियों के बीच उदासी की लहर छा गई थी, लेकिन फिर तीसरे दिन बाद यीशु पुनर्जीवित हो उठे, और तभी से उनके अनुयायी इस दिन को खुशी के पर्व के रूप में मनाने लगे.
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