Dussehra 2020: दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. इस दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले फूंके जाते हैं और साथ ही शस्त्रों की पूजा भी की जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन शस्त्रों की पूजा क्यों की जाती है और किसने की थी दशहरे पर शस्त्र पूजा की शुरुआत.
दशहरे पर शस्त्र पूजा का रहस्य
दशहरे पर शस्त्र पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है. इस दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण का वध किया था. इसी कारण से इस त्योहार को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन क्षत्रिय लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं. क्योंकि यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीते के रूप मनाया जाता है. यही कारण है कि इस दिन शास्त्रों की पूजा करके भगवान राम को भी याद किया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार दशहरे या विजयादशमी पर शस्त्रों की पूजा करने की शुरूआत राजा विक्रमादित्य ने की थी, तभी से आज तक देश के कई हिस्सों में क्षत्रिय लोग दशहरे के दिन शस्त्र पूजा बड़े ही जोर-शोर से करते हैं. उनका मानना हैं कि इस दिन भगवान राम और मां दुर्गा को जिस तरह से बुराई पर जीत मिली थी. उसी तरह हम भी अपने जीवन की हर बुराई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.
इसके अलावा ये भी माना जाता है कि इस दिन शुरू किया गया कोई भी काम कभी भी असफल नहीं होता है, इसलिए आज के दिन क्षत्रिय अपने हथियारों की साफ-सफाई करके उसकी पूजा करते हैं. इसके साथ ही वो एक शपथ भी लेते हैं कि इन शस्त्रों का प्रयोग किसी को नुकसान पहुंचानें के लिए नहीं,बल्कि अपनी आत्मरक्षा के लिए ही करेगें,जबकि ब्राह्मण इसी दिन से अपने शास्त्रों के पठन पाठन की शुरूआत करते हैं और वैश्य अपने व्यापार के जरूरी कामों को इसी दिन करना पसंद करते हैं.
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