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कटोरे में रखे वीर्य से हुआ द्रोणाचार्य का जन्म, अप्सरा को देखकर खुद पर काबू नहीं कर पाए थे पिता भारद्वाज

Mahabharat: हिन्दुओं के प्रमुख काव्य ग्रंथ महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। महाभारत में एक से बढ़कर एक धुरंधरों का व्याख्यान किया गया है। महाभारत की कई ऐसी कहानियां है, जिसके बारे में हमें पता नहीं है। कौरवों के सेनापति रहे द्रोणाचार्य महाभारत के एक प्रमुख पात्र हैं। वो अर्जुन-दुर्योधन समेत सभी कौरवों और […]

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द्रोणाचार्य
  • August 29, 2024 9:35 am Asia/KolkataIST, Updated 4 months ago

Mahabharat: हिन्दुओं के प्रमुख काव्य ग्रंथ महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। महाभारत में एक से बढ़कर एक धुरंधरों का व्याख्यान किया गया है। महाभारत की कई ऐसी कहानियां है, जिसके बारे में हमें पता नहीं है। कौरवों के सेनापति रहे द्रोणाचार्य महाभारत के एक प्रमुख पात्र हैं। वो अर्जुन-दुर्योधन समेत सभी कौरवों और पांडवों के गुरु थे। क्या आपको पता है कि द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ था? आज के समय में उन्हें भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है। आइये जानते हैं उनके जन्म की कहानी।

कटोरे में रखे वीर्य से हुआ द्रोणाचार्य का जन्म

इंद्र के दरबार में रहने वाली घृताची सबसे सुंदर अप्सराओं में से गिनी जाती थीं। एक बार भारद्वाज मुनि गंगा स्नान करके अपनी कुटी की ओर लौट रहे थे। तभी उन्होंने स्नान करते हुए अप्‍सरा घृताची को देखा। घृताची को ऐसे स्नान करता देखकर भारद्वाज मुनि मिलन के लिए आतुर हो गए। ऋषि खुद को संभाल नहीं पाए और उनका वीर्यपात हो गया। उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक एक मिट्टी के पात्र में रख दिया। उसी से द्रौणाचार्य का जन्म हुआ। महर्षि भारद्वाज ने अपने शिष्य अग्निवेश्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी थी। बाद में आग्नेय अस्त्र की शिक्षा द्रोण को मिली।

कौन थे द्रोणाचार्य के माता-पिता

आपको पता दें कि विज्ञान भी मानती है कि मानव स्पर्म को 40 सालों तक सुरक्षित रख सकते हैं। इसके द्वारा बच्चा जन्म ले सकता है। प्राचीन समय में भारद्वाज मुनि की चारों तरफ ख्याति थी। भगवान राम भी उनसे सलाह लिया करते थे। महर्षि भारद्वाज बृहस्पति के पुत्र और कुबेर के नाना थे। चरक संहिता में वर्णित है कि भारद्वाज मुनि ने इंद्र से आयुर्वेद और व्याकरण की शिक्षा ली थी। महाभारत में इन्हें सप्तऋषियों में से एक बताया गया है। वहीं द्रोणाचार्य की मां घृताची कश्यप ऋषि और प्राधा की कन्या थी। घृताची और वेदव्यास के बीच के मिलन से शुकदेव का जन्म हुआ था।

 

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