पापियों की आत्मा निगलने के लिए खून-मवाद से भरी हैं ये खौफनाक नदी, जहां गिद्ध और मगरमच्छ करते हैं जीवित शिकार!

वैतरणी नदी एक भयानक नदी है, जिसका जिक्र गरुड़ पुराण में मिलता है। यह नदी यमलोक में बहती है और इसे बुरे कर्म करने वालों के लिए नरक

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पापियों की आत्मा निगलने के लिए खून-मवाद से भरी हैं ये खौफनाक नदी, जहां गिद्ध और मगरमच्छ करते हैं जीवित शिकार!

Anjali Singh

  • September 21, 2024 6:56 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: वैतरणी नदी एक भयानक नदी है, जिसका जिक्र गरुड़ पुराण में मिलता है। यह नदी यमलोक में बहती है और इसे बुरे कर्म करने वालों के लिए नरक के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि इसका पानी पापियों को देखकर उबलने लगता है और इसमें मांस खाने वाले भयानक जीव रहते हैं।

पुराणों का महत्व

सनातन धर्म में 18 पुराण हैं, जिनमें ब्रह्म पुराण सबसे पुराना माना जाता है। मत्स्य पुराण को संस्कृत साहित्य की दृष्टि से सबसे पुराना पुराण माना जाता है। नारद पुराण में सभी 18 पुराणों का विवरण है, जबकि गरुड़ पुराण वैतरणी नदी का विशेष उल्लेख करता है।

वैतरणी नदी की भयावहता

वैतरणी नदी का पानी रक्त और मवाद से भरा होता है। इसमें मांस खाने वाले जीव जैसे गिद्ध, मगरमच्छ, और भयानक मछलियाँ पाई जाती हैं। पापी जब इस नदी में गिरते हैं, तो उन्हें भयंकर यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। जो पुण्य कार्य करते हैं, उन्हें पार करने के लिए नाव मिलती है, लेकिन पापियों को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

शास्त्रों का संदर्भ

एक श्लोक में कहा गया है

“क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी
विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम्”

इसका अर्थ है कि क्रोध और लालच व्यक्ति को नरक की ओर ले जाते हैं, जबकि ज्ञान और संतोष का जीवन सुखदायक है।

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नारद पुराण में वैतरणी का वर्णन

नारद पुराण में यह वर्णित है कि यमराज ने राजा भगीरथ से नरक की यातनाओं के बारे में बताया। जो लोग महान आत्माओं का अपमान करते हैं, उन्हें यमलोक में कई वर्षों तक दंड भुगतना पड़ता है। धोखेबाजों और लालची लोगों को वैतरणी नदी में डाल दिया जाता है।

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वैतरणी नदी पार करने के उपाय

धार्मिक मान्यता के अनुसार, केवल वे लोग जो पुण्य कर्म करते हैं और अपने पूर्वजों के लिए अनुष्ठान करते हैं, वैतरणी नदी पार कर सकते हैं। विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान किए गए अनुष्ठान महत्वपूर्ण होते हैं। गाय का दान अत्यधिक पुण्य माना जाता है, और यह कलियुग में दान का एक महत्वपूर्ण कार्य है।

वैतरणी नदी केवल एक भौतिक नदी नहीं, बल्कि पाप और पुण्य के बीच की सीमाओं को दर्शाने वाला एक प्रतीक है। यह हमें अपने कर्मों की जिम्मेदारी और सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

 

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