हिंदू ज्योतिषी के अनुसार हर घर में पूजा पाठ अवश्य होना चाहिए. मंदिर और घर में समय समय पर सुख शांति के लिए हवन करवाया जाता है. हवन व किसी भी मंत्र में स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है. लेकिन कभी आपने ये सोचा है कि हम स्वाहा क्यों बोलते हैं. आज हम आपको अपनी खबर के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि स्वाहा शब्द का मतलब क्या होता है और इसका पौरणिक कथाओं में क्या वर्णन देखने को मिलता है.
नई दिल्ली. हिंदू धर्म में पूजा पाठ का खास महत्व होता है. पूजा के दौरान शुभ मुहूर्त, कथा, मंत्र और महत्व को जानकर पूजा की जाती है. हर घर में समय समय पर हवन भी करवाया जाता है. हवन के दौरान मंत्र का पाठ करते हुए स्वाहा कहकर हवन सामग्री, अर्घ व भोग देकर हवन को पूरा किया जाता है. ऐसा करने से घऱ की सुख शांति के लिए मनोकामना मांगी जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम हर मंत्र के अंत में बोले जाने वाले शब्द स्वाहा का प्रयोग क्यों करते हैं या स्वाहा शब्द का अर्थ क्या होता है.
दरअसल स्वाहा का मतलब होता है- सही रीति से पहुंचाना. सीधे शब्दों में कहे तो हवन करने के बाद भोग को भगवान तक पहुंचाना. कोई भी यज्ञ तभी पूरा माना जाता है जब भगवान हवन का ग्रहण देवता न कर लें. देवता ऐसा ग्रहण तभी करते हैं जब अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए. इसके अलावा दूसरा महत्व ये है कि स्वाहा शब्द का प्रयोग ऋग्वेद, यजुर्वेद और वैदिक ग्रंथ में भी देखने को मिलता है.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. दक्ष की पुत्री स्वाहा का विवाह अग्निदेव के साथ करवाया गया. स्वाहा और अग्निदेव का विवाह सभी देवतागण के कहने पर करवाया गया. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने खुद स्वाहा को ये वरदान दिया था कि सिर्फ उसी के द्वारा देवता हवन की सामाग्री को ग्रहण कर सकते हैं, जिसे हविष्य ग्रहण करना कहा जाता है. कहा जाता है कि अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए.
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