नई दिल्ली : विजय दशमी या दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसलिए हर साल विजय दशमी पर रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है। यानी इस दिन बंदूक से लेकर […]
नई दिल्ली : विजय दशमी या दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसलिए हर साल विजय दशमी पर रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है। यानी इस दिन बंदूक से लेकर तलवार, खंजर, लाठी आदि शस्त्रों की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्रथा के पीछे क्या कारण है?
विजय दशमी पर शस्त्र पूजा को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, जब भगवान श्री राम ने माता सीता को दशानन रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए युद्ध में रावण का वध किया था। उस युद्ध में जाने से पहले श्री राम ने शस्त्रों की पूजा की थी।
एक अन्य कहानी के अनुसार, जब मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध कर बुराई का अंत किया था, उसके बाद देवताओं ने मां दुर्गा के शस्त्रों की पूजा की थी।
दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस दिन क्षत्रिय राजा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए शस्त्रों की पूजा करते थे। युद्ध में जाने से पहले शस्त्रों की पूजा की जाती थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन युद्ध में जाने से विजय प्राप्त होती है।
विजय दशमी के दिन शस्त्रों की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करने के बाद शुभ मुहूर्त में सभी शस्त्रों को बाहर निकालकर साफ कपड़े पहनकर चौकी पर रखें और उन पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें शुद्ध करें। इसके बाद सभी शस्त्रों पर मौली बांधें। इसके बाद सभी शस्त्रों पर तिलक लगाएं और फूलों की माला चढ़ाएं तथा चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप से विधि-विधान से पूजा करें।
विजय दशमी का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा और भगवान श्री राम के साथ शस्त्रों की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी परेशानियां, कष्ट और दरिद्रता दूर होती है। इसके अलावा विजय दशमी के दिन शस्त्रों की पूजा करने से शोक और भय का नाश होता है।
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