अध्यात्म

Dattatreya Jayanti 2023: इस कारण मनाई जाती है दत्तात्रेय जयंती? जानें महत्व, तिथि, पूजा विधि और कहानी

नई दिल्ली: हर साल मार्गशीर्ष(Dattatreya Jayanti 2023) यानी अगहन माह की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इस साल दत्तात्रेय जयंती 26 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी। इस दिन दत्तात्रेय जयंती की कथा जरुर पढ़ना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि दत्तात्रेय देव की पूजा से त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है।

दत्तात्रेय जयंती 2023 तिथि और समय

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

पूर्णिमा तिथि आरंभ: 26 दिसंबर 2023 -,सुबह 05:46 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 27 दिसंबर 2023(Dattatreya Jayanti 2023) – सुबह 06:02 बजे

दत्तात्रेय जयंती का महत्व

ऐसी मान्यता है कि अगहन मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय का व्रत करने और उनके दर्शन पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा भी कहा है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से रूके हुए कार्य पूरे हो जाते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए भगवान दत्तात्रेय की पूजा बहुत शुभ मानी जाती है। उनकी तीन भुजाएं और तीन मुख हैं। भगवान दत्तात्रेय की पूजा/आराधना करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है और सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

दत्त जयंती पूजा विधि

बता दें कि भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और फूल, कपूर, धूप, दीप के साथ भगवान दत्तात्रेय की विशेष पूजा करते हैं।

धर्म के मार्ग की प्राप्ति के लिए घरों और मंदिरों में भगवान दत्तात्रेय की मूर्तियों की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर अवधूत गीता और जीवनमुक्त गीता भी पढ़ी जाती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें स्वयं भगवान की वाणी है।

दत्तात्रेय की कहानी

हिंदू परंपरा के अनुसार, दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया के पुत्र थे। अनसूया बहुत ही पवित्र और सदाचारी पत्नी थी। उन्होंने त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बराबर पुत्र पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। देवी त्रिमूर्ति सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती, अनसूया से ईर्ष्या करने लगीं और उन्होंने अपने पतियों से उसकी सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए कहा।

तीनों देवता साधुओं (तपस्वियों) की रूप में अनसूया के पास आए और उनसे इस तरह से भिक्षा मांगी जिससे उनके गुणों की परीक्षा हो सके। अनसूया घबरा गईं लेकिन अपने आप को जल्द ही शांत कर लिया। उन्होंने एक मंत्र बोला, तीनों ऋषियों पर पानी छिड़का, उन्हें बच्चों में बदल दिया और फिर उन्हें स्तनपान कराया।

उसके बाद जब अत्रि अपने आश्रम में लौटे, तो अनसूया ने उन्हें बताया कि क्या हुआ था, जिसे उन्होंने अपनी मानसिक शक्तियों के माध्यम से पहले ही देख लिया था। उसने तीनों शिशुओं को गले लगाया और उन्हें तीन सिर और छह भुजाओं वाले एक ही बच्चे में बदल दिया।

जब तीनों देवता वापस नहीं आये तो उनकी पत्नियां चिंतित हो गईं और वे अनसूया के पास आईं। तीनों देवियों ने उनसे क्षमा मांगी और उनसे अपने पतियों को वापस भेजने की प्रार्थना की। अनसूया ने अनुरोध स्वीकार कर लिया। तब त्रिमूर्ति अपने प्राकृतिक रूप में अत्रि और अनसूया के सामने प्रकट हुए और उन्हें एक पुत्र, दत्तात्रेय का आशीर्वाद दिया, जिसके बाद भगवान दत्तात्रेय को जन्म दिया। इनका नाम दत्त रखा गया। वहीं महर्षि अत्रि के पुत्र होने के कारण इन्हें आत्रेय कहा गया, इस प्रकार दत्त और आत्रेय मिलाकर उनका नाम बना दत्तात्रेय। कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं और संतान सुख, वैवाहिक जीवन में सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं।

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Janhvi Srivastav

मैं जान्हवी श्रीवास्तव, मैंने अपना ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी और मास्टर्स माखनलाल यूनिवर्सिटी भोपाल से किया है। मुझे प्रिंट और सोशल मीडिया का अनुभव है, अभी मैं इंडिया न्यूज़ के डिजिटल प्लेटफार्म "इनखबर" में कंटेंट राइटर की पोस्ट पर हूं।

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