द्रौपदी के इस मंदिर में दलितों की एंट्री थी बैन, प्रदर्शन के बाद खुले द्वार

पुडुचेरी के द्रौपदी मंदिर में दलितों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी. कुछ दिन पहले पूजा करने गई एक दलित लड़की को मंदिर में घुसने नहीं दिया था. इसके बाद दलितों ने मंदिर के बाहर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. शुक्रवार को जिलाधिकारी और एसएसपी मौके पर पहुंचे और दोनों पक्षों को समझाकर दलितों को प्रवेश दिलाया.

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द्रौपदी के इस मंदिर में दलितों की एंट्री थी बैन, प्रदर्शन के बाद खुले द्वार

Aanchal Pandey

  • August 3, 2018 10:26 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

पुडुचेरी. पुडुचेरी के कूनीचंपेट स्थित द्रौपदी मंदिर के द्वार आखिर दलितों के लिए खुल ही गए. शुक्रवार को करीब 100 दलित मंदिर में प्रवेश की अनुमति के लिए परिसर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे. लोगों का एक बड़ा समूह उनके मंदिर में प्रवेश नहीं करने देने की जिद पर अड़ा था. वहीं दलित समुदाय के लोगों का कहना था कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है जिसके चलते उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा.

दोनों पक्षों के आमने-सामने आने के बाद पुलिस बल मौके पर पहुंचा. पुलिस को हल्का बल भी प्रयोग करना पड़ा. आखिर में दोनों पक्षों को पुलिस ने समझाया. पुलिस द्वारा समझाए जाने के बाद दलितों ने मंदिर में प्रवेश किया. पुडुचेरी कलेक्टर विजय चौधरी ने इस हंगामे के शांत होने के बाद कहा कि दोनों पक्षों को दो भाइयों की तरह रहने के लिए समझा दिया है. उम्मीद है कि दोनों पक्षों में आगे भी विरोधाभास नहीं होगा.

मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिलने के बाद प्रदरश्नकारियों में शामिल इलयादासन ने कहा कि हमें खुशी है कि अब हमारा गांव विभाजित नहीं होगा. हम सभी भाई की तरह हैं. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले हमारी एक बेटी को मंदिर में घुसने नहीं दिया गया था. लेकिन आज हम कलेक्टर और एसएसपी साहब के आभारी हैं कि उन्होंने हस्तक्षेप कर हमें मंदिर में जाने की अनुमति दिलवाई.

एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा कि अब कोई समस्या नहीं है, अब दलित भी मंदिर में आ सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं. हम सभी यहां बराबर हैं. तमिलनाडु और पुडुचेरी में दलित अत्याचार के बहुत सारे मामले सामने आते हैं. ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रीय एससी आयोग के पास दर्ज होने वाले प्रत्येक छह में से एक मामला तमिलनाडु या पुडुचेरी का होता है. दोनों ही जगह दलित अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले आते हैं. ताजा मामले ने भेदभाव के तुरंत निस्तारण की मिसाल पेश की है.

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