नई दिल्ली: हिंदू धर्म में छठी मैया को संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है. वहीं विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में छठ पर्व के दौरान कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना का विशेष अवसर है। मान्यता है कि छठी मैया सूर्य देवता की बहन हैं, जो भक्तों को आशीर्वाद देकर उनके जीवन में सुख-शांति और संतान सुख प्रदान करती हैं।
छठ पर्व का महत्व और इसकी कठिन साधना इसे अन्य त्योहारों से अलग बनाती है। इस व्रत में श्रद्धालु 36 घंटों का कठोर उपवास रखते हैं, जिसमें वे पानी तक का सेवन नहीं करते। बता दें व्रत की शुरुआत चतुर्थी तिथि से होती है और सप्तमी तिथि तक इसका समापन होता है। इस दौरान व्रती संध्या और प्रात कालीन अर्घ्य देकर सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा विधि पारिवारिक समृद्धि और संतान की रक्षा के लिए की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को प्रकृति की देवी और शक्ति का स्वरूप माना गया है। उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। कुछ कथाओं में छठी मैया को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी के रूप में भी पूजा जाता है। माना जाता है कि कार्तिक मास में उनकी आराधना से आरोग्यता, विजय और संतति सुख की प्राप्ति होती है। वहीं भगवान कार्तिकेय, जिन्हें युद्ध और विजय के देवता के रूप में जाना जाता है.
छठ पूजा का एक ऐतिहासिक संदर्भ माता सीता से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर माता सीता ने सूर्य देव की आराधना कर इस व्रत को किया था, जिससे इसे विशेष धार्मिक महत्ता मिली। छठ पूजा के दौरान भक्त कठिन तपस्या करते हैं और छठी मैया से अपने परिवार की रक्षा, संतान की भलाई और जीवन में सुख-शांति का आशीर्वाद मांगते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसे एक आध्यात्मिक साधना का रूप भी माना जाता है।
ये भी पढ़ें: रावण ने अपनी बहू का किया था बलात्कार, फिर मिला ऐसा श्राप दोबारा किसी को छुआ तक नहीं