Chhath Puja 2020: आस्था एक ऐसी चीज है जो जाति-धर्म के बंधन को नहीं मानती. धार्मिक ताने-बाने को तोड़ते हुए बिहार के कुछ परिवार पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से छठी मैया का व्रत रखते हैं. छठी मैया का व्रत रखने के पीछे सबके अपने-अपने कारण हैं. छठी मैया ने किसी की झोली में बेटा डाल दिया तो किसी की बीमारी ठीक हो गई.
पटना: आस्था जाति और धर्म के दायरों को नहीं मानती. अगर आपकी आस्था किसी चीज में हैं तो है, फिर चाहे वो किसी भी जाति-धर्म से जुड़ा हुआ ही क्यों ना हो. छठ एक ऐसा ही एक पर्व है जिसे महापर्व का दर्जा हासिल है. बिहार के कई इलाकों में मुस्लिम समाज के लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ छठ महापर्व मनाते हैं. भागलपुर और समस्तीपुर के कुछ मुस्लिम परिवार सालों से छठ पूजा मनाते आ रहे हैं. उनका कहना है कि छठी मैया ने उनकी मन्नत पूरी की जिसके बाद से वो हर साल पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ छठ पूजा मनाते हैं.
भागलपुर के रंगड़ा गांव की रहने वालीं सितारा खातून की चार बच्चियां हैं. सितारा चाहती थीं कि उन्हें एक बेटा हो जाए. बात साल 2018 की है जब सितारा एक बार फिर गर्भवती हुईं और किसी ने उनसे कहा कि छठी मैया से मन्नत मान लो. सितारा ने मान ली और फिर उन्हें बेटा हुआ. सितारा कहती हैं कि छठी मैया ने उन्हें चार बेटियों के बाद एक बेटा दिया इसलिए अब वो जिंदगी भर छठी मैया का व्रत रखेंगी. सितारा बताती हैं कि उनके बेटे के जन्म के बाद से उनके पति की आमदनी भी बढ़ गई. सितारा का मानना है कि छठी मैया की कृपा से ही उन्हें ये खुशियां हासिल हुई हैं.
इसी गांव की सलीमा खातून की 18 साल की नातिन रोहिना खातून को टाइफाइड हो गया लेकिन काफी इलाज के बाद भी वो ठीक नहीं हो सकी. किसी ने कहा कि छठी मैया का सूप उठाने का मन्नत मान लो. सलीमा ने मान लिया और फिर उनकी नातिन ठीक हो गईं. सलीमा तब से हर साल पूरे आदरभाव के साथ छठी मैया का व्रत रखती हैं. यही नहीं सलीमा की देखा देखी उनके पड़ोस में रहने वाला एक मुस्लिम परिवार भी छठ पूजा मनाने लगा है. सलीमा खातून के नाती मोहम्मद शाहबाज कहते हैं कि हम चाहें हाथ जोड़ कर मांगे या फिर हाथ खोलकर मांगना तो आखिर एक से ही है ना क्योंकि सबका मालिक एक है.