नई दिल्ली. उत्तराखंड की पवित्र चार धाम यात्रा शुरू हो गई है. मंगलवार 7 मई अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर धाम के कपाट खुल गए हैं. इनके कपाट हर साल शीतकाल में 6 माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं जो गर्मियों में निर्धारित तय समय पर खोले जाते हैं. वहीं 9 मई को केदारनाथ मंदिर धाम के कपाट और 10 मई को बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोले जाएंगे. हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का काफी ज्यादा महत्व माना गया है. इसके साथ ही चारों स्थलों को पवित्र माना गया है.
दरअसल चमोली जिले स्थित बद्रीनाथ धाम भगवान बद्री विशाल (विष्णु) का पवित्र स्थल है. वहीं रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम को भगवान शिव शंकर का पवित्र धाम माना गया है. इसके साथ ही उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा को भी काफी खास माना गया है. इसलिए जानिए क्या है चार धाम यात्रा का महत्व, कब हुई थी शुरू.
चार धाम यात्रा का महत्व
देवभूमी उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की चार धाम यात्रा का हिंदू धर्म में काफी महत्व माना गया है. मान्यता है कि जीवन में इन चार धामों की यात्रा करने वाले हर एक श्रद्धालुओं के सभी पाप धुल जाते हैं. इसके साथ ही व्यक्ति की आत्मा को जीवन और मृत्यु के बंधन से मक्ति मिल जाती है.
चार धाम यात्रा कब हुई थी शुरू
मान्यता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की खोज की थी. बताया जाता है कि पहले भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति वहां तप्त एक कुंड के गुफा में थी जिसे 16वीं सदी के राजा ने मौजूदा मंदिर में रखा था. जिसके बाद आदिगुरु शंकराचार्य इस स्थान की दोबोरा स्थापना की थी. वहीं केदारनाथ भगवान को शिव जी के 12 ज्योतिर्लिगों में से एक बताया गया है. काफी समय पहले अधिकतर स्थानीय लोग ही श्रद्धापूर्वक चारों धाम की यात्रा पर जाते थे.
हालांकि, साल 1950 के दशक में चारों धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी. जिसके बाद साल 1962 में जब भारत-चीन का युद्ध हुआ तो वर्तमान में उत्तराखंड और तत्कालीन उत्तर प्रदेश राज्य की परिवहन व्यवस्था में सुधार हुआ तो चार धाम जाने वाले यात्रियों की संख्या और बढ़ गई.
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