नई दिल्ली : श्री कृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी आने वाली है. यह त्योहार को पूरे भारत में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. कुछ जगहों पर कृष्ण लीला तो कहीं उनकी कहानियों को मंच पर दिखाया जाता है. हर साल कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की रोहिणी नक्षत्र […]
नई दिल्ली : श्री कृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी आने वाली है. यह त्योहार को पूरे भारत में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. कुछ जगहों पर कृष्ण लीला तो कहीं उनकी कहानियों को मंच पर दिखाया जाता है. हर साल कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की रोहिणी नक्षत्र में आती है.
इस साल जन्माष्टमी का महापर्व 18 अगस्त, गुरुवार को पड़ रहा है. हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण वासुदेव और जानकी के पुत्र थे जिन्हें पूरे विश्व में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण के पास बहुत सारी शक्तियां भी थी, सुदर्शन चक्र, कोस्तुब मणि और पांच जन्य शंख भी उनके पास था.
आज हम भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी एक ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे शायद ही आपने सुना होगा. महाभारत काल के बारे में कई ग्रंथों, पुराणों, महाभारत ग्रंथ में ज़िक्र मिलता है कि उस समय पोंड्रक नाम का एक राजा था, जो खुद के भगवान श्री कृष्ण होने का दावा करता था.
माना जाता है कि वह ऐसा इसलिए करता क्योंकि उसके पिता का नाम भी वासुदेव था. एक बार उसने खुद को असली कृष्ण साबित करने के लिए माया रची. उसने अपने पास भी एक नकली सुदर्शन चक्र, नकली कोस्तुब मणि रख ली और मोर पंख लेकर ये दावा करने लगा कि वह असल कृष्ण हैं.
क्योंकि राजा पोंड्रक पुंड्र उस क्षेत्र का राजा था. काशी के आसपास का क्षेत्र उसके अधीन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि काशी नरेश से भी राजा की अच्छी मित्रता थी. राजा पोंड्रक अपनी माया से आसपास के इलाकों में खुद के कृष्ण होने का प्रचार भी करने लगा. एक बार तो राजा पोंड्रक ने अपने करीबियों के बहकावे में आकर भगवान कृष्ण को संदेश तक भेज दिया. इस सन्देश में लिखा था कि मैं ही असली कृष्ण हूं और तुम मथुरा छोड़कर चले जाओ या फिर मेरे साथ आकर युद्ध करो.
उसके बाद भगवान श्री कृष्ण राजा पोंड्रक के साथ युद्ध के लिए तैयार हुए. जब भगवान कृष्ण युद्ध भूमि में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजा पोंड्रक तो बिल्कुल उनके जैसा ही दिखाई दे रहा था. कुछ ही देर में भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र के इस्तेमाल से जीत हासिल कर ली. ये कहानी असल गुणों को लेकर आगे बढ़ने और नक़ल ना देने की सीख देती है.
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