Ashtahnika 2018: जैन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार अष्टन्हिका पर्व मनाने के पीछे ये है खास महत्व

इस साल अष्टन्हिका पर्व 22 फरवरी को मनाया जाएगा. अष्टन्हिका जैन धर्म के लोगों के बीच विधि-विधान पूर्वक मनाया जाता है. वैसे ये साल में तीन बार आता है. जैन श्रद्धालुओं के लिए ये पर्व बड़े त्योहारों में से एक हैं. जिसे वो श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं. अष्टन्हिका पर्व को जैन धर्म में भगवान महावीर को भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं.

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Ashtahnika 2018:  जैन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार अष्टन्हिका पर्व मनाने के पीछे ये है खास महत्व

Aanchal Pandey

  • February 20, 2018 8:20 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: जैन धर्म में मनाया जाना वाला यह पर्व विशेष स्थान रखता है. आठ दिन का यह पर्व, वर्ष में तीन बार मनाया जाता है. आषाड़ (जून- जुलाई ), कार्तिक (अक्टूबर – नवम्बर ), एवं फाल्गुन माह ( फरवरी – मार्च ) में इस पर्व को मनाया जाता है. भगवान महावीर को समर्पित यह पर्व जैन धर्म के सबसे पुराने त्यौहारों में से एक है. जैन धर्म में भगवान महावीर, भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. श्वेतांबर एवं दिगाम्बर दोनों ही द्वारा इस पर्व को पूरे श्रद्धा से मनाया जाता है. आषाढ़ एवं फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पूर्णमासी तक मनाए जाने वाले पर्व को नंदिश्वर अष्टन्हिका भी बोला जाता है. इन पूरे आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले, ध्यान एवं आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व्रत आदि करते हैं. इस समय किसी भी प्रकार की विधियों से, बुरी आदतों से, बुरे विचारों से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है.

नंदिश्वर अष्टन्हिका की मान्यता अनुसार पूरे संसार में आठ टापू एवं 52 जैन मंदिर हैं. नंदिश्वर आठवां टापू माना जाता है जहां तप करने से आत्मा का शुद्धीकरण होता है एवं मोक्ष प्राप्ति होती है. नंदिश्वर टापू, तीन बड़े पर्वतों से घिरा हुआ है, विशेषकर अंजन पर्वत, ददिमुख पर्वत एवं रतिकर पर्वत. इन सब में भी एक एक जैन मंदिर स्थापित है.

जैन धर्म के अनुसार तृत्य टापू जिसे की मनुषोत्तर टापू भी बोला जाता है, उसके आगे मनुष्य नहीं जा पाता. आत्मा की शुद्धि ही एक मार्ग है जिसके द्वारा इससे आगे के टापुओं के दर्शन हो सकते हैं. कहा जाता है की इस टापुओं की देखभार और रक्षा समस्त देवी देवता करते हैं. मोक्ष की प्राप्ति हो या फिर आत्मा की पूर्ण शुद्धि हो तब ही आप इसके आगे विचरण कर सकते हैं.

इन आठ दिनो में, समस्त जैन मंदिरों में, जैन गुरु सिद्धिचक्र का ज्ञान बांटेते हैं एवं शास्त्रार्थ करते हैं, प्रवचन देते हैं, आत्मीय शुद्धि के मार्ग प्रशस्त करते हैं. क्योंकि मौशय योनि में आगे जाना सम्भव नहीं है इसीलिए, मनुष्य द्वारा अपने अपने घरों में, समाज में ही इस पर्व को मनाया जाता है एवं अपनी आत्मीय शुद्धि के लिए जैन धर्म दवर दिए गए मार्ग का अनुसरण किया जाता है. जैन सिद्ध गुरुओं का स्मरण कर उन्हें भी पूजा जाता है.

ऐसा भी माना गया है की सिद्ध पुरुषों एवं ज्ञानियों का स्मरण कर उनके प्रशस्त मार्ग में आगे बदने से व्यक्ति के जीवन की बड़ी सी बड़ी आपदाएं भी चुटकियों में समाप्त हो जाती हैं. पद्मपुराण में वर्णित महाराज दशरथ कि भी इस पर्व को मनाने का विवरण है. सिद्ध चक्र का अनुसरण कर कई कुष्ठ रोगियों को भी अपने रोग से मुक्ति मिल गयी थी.

इस साल अष्टन्हिका पर्व 22 फरवरी को मनाया जाएगा. अष्टन्हिका जैन धर्म के लोगों के बीच विधि-विधान पूर्वक मनाया जाता है. वैसे ये साल में तीन बार आता है. जैन श्रद्धालुओं के लिए ये पर्व बड़े त्योहारों में से एक हैं. जिसे वो श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं. अष्टन्हिका पर्व को जैन धर्म में भगवान महावीर को भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं.

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