Amalaki Ekadashi 2018: अमलाकी एकादशी साल की महत्वपूर्ण एकादशी में से एक होती है. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि अमलाकी एकादशी व्रत पर किस कथा का पढ़ना चाहिए.
नई दिल्ली: साल भर में 12 एकादशी होती है. लेकिन अमलाकी एकादशी का खास महत्व होता है. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि भगवान विष्णु को आंवला का वृक्ष प्रिय होता है. इसीलिए इस पूजा में विष्णु जी को आंवले फल को अर्पित किया जाता है. इस दिन पूजा के दौरान पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों की जल्द मनोकामना पूरी करते हैं.
अमलाकी एकादशी व्रत कथा
अमलाकी एकादशी का वर्णन पद्म पुराण एवं ब्रह्मांड पुराण में मिलता है. वशिष्ठ ऋषि द्वारा इस व्रत का वर्णन ब्रह्माण्ड पुराण में किया गया है. वशिष्ठ ऋषि इस व्रत का व्याख्यान करते हुए बतलाते हैं की एक समय वैदिशा नामक राज्य में चित्रार्थ नामक परमज्ञानि राजा अपनी प्रजा के साथ अमलाकी एकादशी का व्रत कर रहे थे. मंदिर के प्रांगण में लगे यू आंवले के वृक्ष के नीचे ही भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित कर रात भर भजन आदि से पूजन किया गया. उसी समय एक शिकारी भी वहां पहुंचा, थक हार कर उसने भी रात भर बाकी प्रजा के साथ रात भर भजन आदि के साथ जग्राता किया एवं दूसरे दिन बाकियों के साथ ही व्रत का पारण किया.
भगवान विष्णु की अनुकंपा एवं व्रत के पालन से अर्जित किए हुए पुण्य से दूसरे जन्म में वह शिकारी, वसुरथ नामक एक महान राजा बना. राजा भगवान विष्णु का अनंत भक्त बन कर अपनी प्रजा के उद्धार में लीं रहता था. नारायण की कृपा में एवं दान पुण्य में उसका असीम विश्वास बना रहता. एक बार शिकार खेलते खेलते वह जंगल में भटक गया. थक हार कर एक वृक्ष के नीचे उसे नींद आ गयी. तभी वहां, नरभक्षि प्रजाति के भील पहुंच गए एवं राजा को बंदी बना लिया. राजा को मारने के लिए विभिन्न प्रकार के औजार, अस्त्रों से राजा को मारने की कोशिश की गयी लेकिन राजा का बाल भी बांका नहीं हुआ.
यह देख भील प्रजाति अचम्भित होने लगी. तभी एक दिव्य शक्ति राजा से उत्पन्न होकर उनके समस्त दुश्मनों के विनाश करने लगी. कुछ ही पल में समस्त भील प्रजाति राजा के चारों तरफ़ मृत अवस्था में पड़ी थी. तभी आकाशवाणी हुई, हे राजन, तुमने अपने पूर्व जन्म में अमलाकी एकादशी के व्रत का पालन कर भगवान विष्णु की भक्ति की, यह मुक्ति भी उसी का फल है. राजा ईश्वर का धन्यवाद देकर वापस अपने प्रदेश पहुंच कर लम्बे समय तक राज करता रहा. ऋषि वशिष्ठ द्वारा, महाराज मन्धत को अमलाकी व्रत के महात्यम की कथा पूर्ण हुई.
आज क्या करें :
व्रत उपवास के नियम का तो पालन करें ही, साथ ही आज के दिन आंवले के पेड़ का रोपण करना बहुत शुभ होता है. घर में सुख समृद्धि बनी रहती है एवं रोग-शोक से मुक्ति मिलती है. आंवले का पेड़ वैसे भी औषध रूप में अत्यंत प्रभावशाली है. इसे दूसरों को गिफ्ट भी कर सकते हैं. ऐसा करने से बह्रमा, विष्णु एवं महेश तीनो का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है. अमलाकी एकादशी के व्रत से मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है.
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