Akshay Navami 2019 Date: कार्तिक महीने में कई त्योहार पड़ते हैं. अभी कुछ समय पहले ही दिवाली और छठ का महापर्व मनाया गया और अब कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा. अक्षय नवमी या आंवला नवमी का यह त्योहार दिवाली के 8 दिन बाद होता है. हिंदू शास्त्रों में अक्षय नवमी का बहुत महत्व बताया गया है. इस वर्ष अक्षय नवमी 5 नवंबर यानी मंगलवार के दिन पड़ रही है.
जानें क्या है अक्षय नवमी का महत्व
अक्षय नवमी का यह पावन दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए बेहद शुभ माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी का वही महत्व है जो वैशाख मास की तृतीय यानी अक्षय तृतीया का है. शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था. कहा जाता है कि आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक नाम के दैत्य का वथ किया था और उसके रोम से कुष्माण्ड बेल उत्पन्न हुई थी. इसी के चलते अक्षय नवमी के दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है. साथ ही आज के दिन विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने पर कन्यादान के बराबर फल मिलता है.
अक्षय नवमी को इन नामों से भी जाना जाता है
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है. कहा जाता है कि भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा की तिथि तक आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं. अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के अतिरिक्त भगवान विष्णु की भी विधि विधान से पूजा की जाती है. शास्त्रों के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजा, तर्पण तथा अन्नादि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. अक्षय नवमी को आंवला नवमी और कुष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है.
अक्षय नवमी की पूजन विधि
अक्षय नवमी के दिन प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें. दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि को लेकर व्रत का संकल्प करें. संकल्प के बाद आवंले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ओम धात्र्यै नम: मंत्र से पूजन करनी चाहिए. साथ ही आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार अर्पित करते हुए पितरों का तर्पण करना चाहिए, फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करे.
अक्षय नवमी की प्रचलित व्रत कथा
काशी नगर में एक नि:संतान धर्मात्मा और दानी वैश्य रहता था. एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा. यह बात जब वैश्य को पता चली तो उससे मना कर दिया लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही. एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी. इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ. लाभ की बजाय उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी. वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी. इस पर वैश्य कहना गोवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है, इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर गंगा स्नान कर तभी तू इस कष्ट से मुक्ति पा सकती है.
वैश्य की पत्नी गंगा किनारे रहने लगी. कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्ध महिला का वेष धारण कर उसके पास आयीं और बोलीं यदि तुम मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा और पूजा करोगी तो ऐसा करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा. वृद्ध महिला की बात मानकर वैश्य की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी. ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई.
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