नई दिल्ली. करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है. जिसे अहोई आठे भी कहते हैं. जिस दिन दीपावली होती है अहोई भी उसी दिन की पड़ती है. इस व्रत को वे स्त्रियाँ ही करती हैं जिनकी सन्तान होती हैं. यह व्रत संतान की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से किया जाता है. इस दिन औरतें उपवास रखती हैं और अहोई की पूजा की जाती है.
अहोई व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई, साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी.
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका समाधान पूछा.
पंडित ने कहा तुम सुरही गाय की सेवा किया करो. वह यदि तेरी कोख छोड़ दे तो बच्चे जीवित रह सकते है. पंडित की बात सुनकर छोटी बहु ने दूसरे दिन से सुरही गाय की सेवा काना प्रारम्भ कर दिया. वह प्रतिदिन सुबह सवेरे उठकर गाय का गोबर आदि सा कर देती थी. गाय ने अपने मन में सोचा कि, यह कार्य कौन कर रहा है, इसका पता लगाउंगी.
दूसरे दिन गाय माता जलदी जगी और देखती है कि उस स्थान पर साहूकार की छोटी बहु झाड़ू-बुहारी करके सफाई कर रही है. सुरही गाय ने छोटी बहु से पूछा कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है ? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग लें. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बाँध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते है. यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली. रास्ते में कड़ी धुप से व्याकुल होकर दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई.
जिस पेड़ के नीचे दोनों बैठी थी उस पेड़ पर गरुड़ पक्षी का एक बच्चा रहता था।.थोड़ी देर में ही एक सांप आकर उस बच्चे को मारने की कोशिश करने लगा. इस दृश्य को देखकर साहूकार की बहु ने उस सांप को मारकर एक डाल के नीचे उसे छिपा दिया और उस गरुड़ के बच्चे को मरने से बचा लिया. कुछ देर पश्चात उस बच्चे की माँ वहां आई. जब उसने वहां देखा तो उसने सोचा कि साहूकार की बहु ने ही उसके बच्चे को मारा है. ऐसा सोचकर वो साहूकार की बहु को चोंच से मारने लगी.
तब साहूकार की बहु ने कहा कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा है. तेरे बच्चे को डसने एक सांप आया था मैंने उसे मारकर तेरे बच्चे की रक्षा की है. मरा हुआ सांप डाल के नीचे दबा हुआ है. बहु की बातों से वह प्रसन्न हो गई और बोली जो कुछ भी तू मुझ से चाहती है मांग ले. बहु ने उससे कहा कि सात समुन्द्र पर स्याहू माता रहती है तू मुझे उस तक पहुंचा दे. तब उस गरुड़ पंखिनी ने उन दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर समुद्र के उस पार स्याहू माता के पास पहुंचा दिया.
स्याहू माता उन्हें देखकर बोली बहुत दिनों के बाद आई है. वह पुनः बोली मेरे सर में जू पड़ गई है, तू उसे निकाल दे. तब सुरही गाय के कहने पर साहूकार की बहु ने सिलाई से स्याहू माता की साड़ी जूँओं को निकाल दिया. इस पर स्याहू माता अत्यंत खुश हो गई. स्याहू माता ने उसे साहूकार की बहु से कहा कि तेरे साथ बेटे और साथ बहुएँ हो. यह सुनकर साहूकार की बहु ने कहा कि मुझे तो एक भी बेटा नहीं है सात कहा से होंगे. जब स्याहू माता ने इसका कारण पूंछा तो छोटी बहु ने कहा कि यदि आप वचन दे तो मैं इसका कारण बता सकती हूं. स्याहू माता ने उसे वचन दे दिया, वचन बद्ध करा लेने के बाद छोटी बहु ने कहा कि मेरी कोख तो आपके पास बंद पड़ी है, उसे खोल दें.
स्याहू माता ने कहा कि मैं तेरी बातों में आकर धोखा खा गई. अब मुझे तेरी कोख खोलनी पड़ेगी. इतना कहने के साथ ही स्याहू माता ने कहा कि तू अब अपने घर जा. तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी. घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना. सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना. उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली. वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई. उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया.
उधर उसकी जेठानियां परस्पर कहने लगी कि सब लोग पूजा का कार्य शीघ्र पूरा कर लो. कही ऐसा न हो कि, छोटी बहु अपने बच्चो का स्मरण कर रोना-धोना न शुरू कर दे. नहीं तो रंग में भंग हो जाएगा. लेकिन जब छोटी बहु के घर से रोने-धोने की आवा नहीं आई तो उन्होंने अपने बच्चों को छोटी बहु के घर पता लगाने भेजा. बच्चो ने घर आकर बताया कि वहां तो उद्यापन का कार्यक्रम चल रहा है.
इतना सुनते ही सभी जेठानियां आकर उससे पूंछने लगी कि, तूने अपनी कोख कैसे खुलवायी. इसने कहा कि स्याहू माता ने कृपा कर उसकी खोख खोल दी. सब लोग अहोई माता की जय-जयकार करने लगे. जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करे.
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